मंगलवार, 31 दिसंबर 2019

नया साल बेमिसाल..

वो गया साल भी कभी नया साल था
ये आया साल भी नया साल बेमिसाल है..

वो नूर मुकम्मल ये रोशन जमाल है,
वो भी कमाल था ये भी कमाल है..

आज का गुमान है ना कल का मलाल है,
वो भी कमाल था ये भी कमाल है..

न कल की शिकायतें न कल के सवाल हैं, 
वो भी कमाल था ये भी कमाल है..

वो दर्द मुतमईं ये सर्द बुरा हाल है,
वो भी कमाल था ये भी कमाल है..

वो गया साल भी कभी नया साल था
ये आया साल भी नया साल बेमिसाल है..


अक्षिणी

सोमवार, 30 दिसंबर 2019

बैरी कोहरा..

बैरी कोहरा धूप छुपाए, छुड़वाए कौन?
धरती काँपे धुुआँ उठाए,  बहलाए कौन?

सूरज मांगे आज फिरौती, चुकाए कौन?
एक अलाव पे आस टिके, जलाए कौन?

पारा हमसे रूठा बैठा, मनाए कौन?
निस दिन देखो गिरता जाए, उठाए कौन?

बीते बरस को ठेस लगी, समझाए कौन?

नये बरस की आस जगे, रुक पाए कौन?

अक्षिणी 

रविवार, 29 दिसंबर 2019

भैया बहना..

भैया कमाल हैं और बहना धमाल हैं
एक से बढ़कर एक दोनों की चाल है
इनसे भी आगे इनके सलाहकार हैं
सोचते हैं जनता तो खाली दिमाग है

रोज उठा लाते हैं स्कीम नई ये लोग
इन के बस की नहीं मानते नहीं ये लोग
दौड़ा देते हैं कभी मंदिर कभी मस्जिद 
धरने कभी अनशन पे बैठा देते हैं ये लोग 

भैया कमाल हैं और बहना धमाल हैं
धोती फाड़ कर कर देते रुमाल हैं
इनसे भी आगे इनके सलाहकार हैं 
बँधुआ हैं या दिहाड़ी के ताबेदार हैं

वो सोना बनवाते हैं,ये गला दबवाती हैं
वो गायब हो जाते हैं ये घायल हो जाती हैं
आतुर हैं वो सत्ता पाने को,इनको देखो
भागते दौड़ते उलट बांसी खा जाती हैं..

भैया कमाल हैं और बहना धमाल हैं
हर रोज उठाते एक नया बवाल हैं
इनसे भी आगे इनके सलाहकार हैं 
खानदानी नौकर हैं पुश्तैनी गुलाम हैं 

गणित बहुत लगाते हैं पर कुछ ना पाते हैं
निन्यानवे के फेर में पिचत्तिस हुए जाते हैं 
जहाँ जाते बस गरियाए लतियाए जाते हैं
अगले दिन फिर लौट के ये आ जाते हैं

भैया कमाल हैं और बहना धमाल हैं
उलटी जो चाल है बिगड़े से हाल हैं 
इनसे भी आगे इनके सलाहकार हैं 
जनता सब समझे कैम्ब्रिज के लाल हैं..

अक्षिणी 

शुक्रवार, 27 दिसंबर 2019

बच्चे तो बच्चे हैं ..

बच्चे तो बच्चे हैं बहकाए जाएंगे
मीठी मीठी बातों से भरमाए जाएंगे
गरम खून है इंकलाब की बात सुनेंगे
हवन कुंड में तेजाब की बात सुनेंगे
बच्चे तो बच्चे हैं ..

इसकी उसकी बातों में आ जाएंगे
बैरी की उलटी चालों में आ जाएंगे
फिर आग लगाऐंगे पत्थर बरसाएंगे
नफरत से अपने ही घर सुलगाएंगे
बच्चे तो बच्चे हैं ..

जाने कैसे अब ये समझाए जाएंगे..
पछताएंगे जब ये होश में आएंगे..
उलटी पाटी ये पढ़वाए जाएंगे..
बच्चे तो बच्चे हैं बहकाए जाएंगे..
बच्चे तो बच्चे हैं ..

अक्षिणी 

सोमवार, 16 दिसंबर 2019

झूठ का बाजार..

जब सच के चेहरे अलगअलग हो,
जब तेरा सच मेरे सच से जुदा हो ,
तो तय है कि झूठ का बाजार चलेगा..
सच्चाई ही बेगुनाह का गुनाह होगा..

अक्षिणी 

रविवार, 15 दिसंबर 2019

विछोह..

इतिहास गवाह है 
जब भी ये पार्टी
सत्ता से विलग हुई है 
देश में आग लगी है
संविधान जला है
रेलें फूँकी गई हैं
पटरियाँ उखाड़ी गई हैं
शिक्षा संस्थानों में हड़तालें हुई हैं
मजहबी दंगे हुए हैं
एक बार फिर
सत्ता का वियोग असहनीय है
असहिष्णुता चरम पर है
एक बार फिर
काँग्रेस सत्ता से बाहर है..

अक्षिणी 

वो..

जो महकती है मेरे आस पास कहीं
महका जाती है मेरे अहसास कई
यूँ ही फुरकत में याद आती है कभी
अँगड़ाई लिए जाते हैं जज़्बात कई

जो ना मिल पाए तो बेचैन किए जाती है
वो हरजाई मेरा चैन लिए जाती है
कितना समझाता हूँ खुद को मगर 
हर बार मुझे हलकान किए जाती है

जब भी दिखती है सरेआम कहीं 
वहीं थम जाते हैं मेरे अल्फाज़ कई
यूँ मेरी रूह को वो जगा जाती है 
दिखा जाती है सुबहों को ख्वाब कई

जब भी आती है वो याद मुझे
कर जाती है वो खुशओआबाद मुझे
छन के आती है जो वो पास मेरे
दे जाती है नई जान मेरी चाय मुझे

चायदिवस की शुभकामनाएं 
#InternationalTeaDay

अक्षिणी 

शुक्रवार, 6 दिसंबर 2019

कहानी कहिए..

कह पाएं तो 
कविताओं में कहानी कहिए..
नहीं अपनी तो
किसी और की ज़बानी कहिए..

दिल को छू जाए 
वो पानी की रवानी कहिए..
छंदों में ढाल के
दास्तां वो पहचानी कहिए..

सच हो या नहीं 
बस बात सुहानी कहिए..
नये दोस्त सही
बस याद पुरानी कहिए..

हकीकत बे-नूर सही
ख्वाबों की रूहानी कहिए..
वो जो मिल जाए तो
याद करती है दीवानी कहिए..

जो ना मिल पाएं तो
बस याद निशानी कहिए 
और मिल जाएं तो
रात बरसात तूफानी कहिए..

दोहों में बांधिए,
सवैयों की ज़ुबानी कहिए..
कह पाएं  तो
कविताओं में कहानी कहिए..

अक्षिणी 


सोमवार, 2 दिसंबर 2019

हूक..

कोनों कोनों में 
दबे छिपे पन्ने ..
जब याद आए
पहचानी सी 
इक हूक उठाए..
फिर कोई किताब
उठाई जाए
और एक बैठक में
बाँच दी जाए..
अक्षिणी 

रविवार, 1 दिसंबर 2019

सयानों से दूरी..

सयानों से दूरी बनाए रखना..
दीवानों से दिल लगाए रखना..
चार दिन की ज़िंदगी है यारा,
दीवानगी को यूँ ही बनाए रखना..

अक्षिणी 

शनिवार, 30 नवंबर 2019

ऐसा जनता का राज रहे..

राजा का ताज रहे।
रानी की लाज रहे।
मंत्री को काज रहे।
सिपाही लाठीबाज रहे।
ऐसा जनता का राज रहे।

छोटे खयाल करे
खोटे सवाल करे
बेटी हलाल करे
रोटी बवाल करे
ऐसा जनता का राज रहे..

सौदे दलाल करे
मौतें जलाल करे
गोते गुलाल करे
धोती रुमाल करे
ऐसा जनता का राज रहे..

अक्षिणी 

खबर है कहाँ ..

खबर भी कहाँ  है..
महज एक ट्वीट है..
वाट्स अप  पर 
फकत एक पोस्ट
स्क्राॅल करती 
हमारी अंगुलियां
देखती हैं ..
एक पल ठिठकती हैं 
और आगे बढ़ जाती है
गाँधी और गोडसे की ओर..

अक्षिणी 

शुक्रवार, 29 नवंबर 2019

बेटी को..

बात बेटी को बचाने की है तो 
बेटे को पढ़ाना जरूरी है..
अगर बेटी को पढ़ाने की है तो
बेटे को समझाना जरूरी है..

अक्षिणी 

राज तो..

अरे भाई.. 
राज तो राजा राम जी का भी नहीं रहा..
फिर फडनवीस तो साधारण मनुष्य ही है..
उसके पितामह न ठाकरे न नेहरू
न रसूख वाले पँवार..
न उसका खानदान गाँधी, 
न प्रधानमंत्रियों वाला..
राज करना कहाँ  से आता..
कौन सिखाता उसे 
सरकारी रेवड़ियां बाँटना..
जितना चला उतना बहुत..

अक्षिणी 

तुझ तक..

घिरा बैठा हूँ अपने ही दायरों में,
मुद्दत से खुद को सँभाले हुए..
मैं  बिखर न जाऊं कहीं,
तुझ तक पहुँचने की कोशिश में ..

अक्षिणी 

वो लुटती,जलती,मरती रहेगी..

तुम गाँधी गोडसे करते रहना,
वो लुटती,जलती,मरती रहेगी..

तुम वकील कचहरी खेलते रहना,
वो लुटती,जलती,मरती रहेगी..

तुम सिलाई मशीन बाँटते रहना,
वो लुटती,मरती,जलती रहेगी..

तुम धर्म-अधर्म के गीत गाना
वो खटती कटती मरती रहेगी..


अक्षिणी 

आधुनिक भांड

निर्णायक ..?
ये लोग खुद को 
ठेकेदार समझने लगे हैं..
जानते नहीं कि
म्यूट दबा देती है जनता
एक सीमा के बाद..
आता कहाँ है इन्हें 
खबरों को पढ़ना..
ये जानते हैं बस
खबरों को गढ़ना..
प्रवक्ता नहीं ये 
इस काल के भांड हैं ..




अक्षिणी 

ठाकरे..

एक रहिन ठाकरे..
बाला साहिब ठाकरे..
शेर माणुस..खालिस..
जय मराठा..

एक हईं ठाकरे..
अद्भव ठाकरे ..
खींसा निपोर..चापलूस..
गए मराठा..

एक अऊर हुईं ठाकरे..
आदि ठाकरे..
बाळक बुद्दि.. पप्पु माणुस..
गए मराठा..


अक्षिणी 

शिव सेना..

लो आज सुण्यो है नाहरियो स्याला रे संग सोयो है..
शिव सेना रो सूरजड़ो बादल री ओटां खोयो है..
राज रे खातर माँ बदली है..
ताज रे खातर बाप बिक्यो है..

लो आज सुणी है सेना रो बनवास टुट्यो है,
आ बात सही है शिव सेना रो हाथ खुल्यो है..
कुर्सी रे खातर माँ बदली है..
कुर्सी रे खातर बाप बिक्यो है..

लो आज सुण्यो है जनता रो विश्वास टुट्यो है,
हाँ साँच सुण्यो है पुरखाँ रो आसीरवाद छुट्यो है..
सत्ता रे खातर माँ बदली है ..
सत्ता रे खातर बाप बिक्यो है..

लो आज सुण्यो है मराठा हिंदवाणी सूरज डूब्यो है,
साफ सगत फेर म्हारा भारत रो भाग डुब्यो है..
स्वारथ रे खातर आस बिकी है,
लालच रे खातर मान बिक्यो है..

अक्षिणी 

लानतें..

नपुंसकों का कानून बस भेजता है कुछ लानतें..
कहता है कि अपराधियों की बढ़ गई हैं हिम्मतें..

काजी साब तो है बस इंसाफ नहीं मिल रहे
या कि सय्याद तो हैं जल्लाद नहीं मिल रहे..

अक्षिणी 

बहत्तर साल..

बीत गए हैं बहत्तर साल..
फिर भी 
नहीं बिछा पाए हम कानून का जाल
नहीं बना पाए कोई शिकंजा
जो फोड़ सके इन भेड़ियों का भाल
आखिर कब तक
सहते रहेंगे
इन जानवरों के व्यभिचार?
है कोई जवाब?
उठो..
मोमबत्तियों से कुछ नहीं होगा
उठानी होगी अब मशाल
और फूँकने होंगे
ये नरपिशाच..

अक्षिणी 

मंगलवार, 19 नवंबर 2019

पुरुष दिन..

पुरुष दिन कुछ यूँ मनाया,
बीवी से मौन व्रत है रखवाया.

सुबह से चुप हों बैठी हैं.
मानों जीभ इनकी ऐंठी है.
कल की कल देखेंगे 
आज तो अपना दिन आया.

पुरुष दिन कुछ यूँ मनाया,
वाट्स अप पर ब्लाॅक दबाया.
पूरे दिन फोन नहीं  उठाया,
बेगम का हुकुम नहीं बजाया.

पुरुष दिन कुछ यूँ मनाया..
बिना शेव के दफ्तर आया
गीला तौलिया छोड़ के आया
बिस्तर को सीधा नहीं लगाया

पुरुष दिन कुछ यूँ मनाया 
दो घंटे घर देर से आया
मस्त बहुत ये दिन बिताया
आज मैंने खाना नहीं बनाया

पुरुष दिन कुछ यूँ मनाया
झाडू पोंछा नहीं लगाया
टाॅमी को भी नहीं घुमाया
मैडम का सर नहीं दबाया

पुरुष दिन..

अक्षिणी

सोमवार, 11 नवंबर 2019

चिता के फूल..

      रोज मरते हैं  
      खाक होते हैं  
      फिर उठते हैं 
      अपनी ही 
      चिता के फूल
      चुनने के लिए 
      और जी उठते हैं  
      एक बार फिर
      फिर एक बार 
      मरने के लिए..

        अक्षिणी

शनिवार, 2 नवंबर 2019

सँवारती हूँ उन्हें..

रोज सुबह पुकारती हूँ,
सँवारती हूँ उन्हें..
जगाती हूँ , 
आँगन में ले आती हूँ 
सजाती हूँ,
थोड़ी धूप दिखाती हूँ..
दुलराती हूँ,
चाहों के झूले में  झुलाती हूँ..
सींचती हूँ,
हवा का रुख दिखाती हूँ..
भींचती हूँ, 
और सहेज कर रख देती हूँ..
अधूरे सही,
सपने तो मेरे अपने हैं ..
जीवित रखती हूँ उन्हें,
सँवारती हूँ उन्हें ..




अक्षिणी 



एक या दो बस..

यदि मनुष्य हो तो बच्चे एक या दो बस,
जो जानवर हो तो लाईन लगाओ दस..

हो मनुष्य तो संतान एक या दो बस,
हो जानवर गर तो खड़ा करो सर्कस..


अक्षिणी 

हम सा..

मुश्किल है हम सा कोई होना,
एक कोशिश आप भी कर देखिए ..


अक्षिणी 

शुक्रवार, 1 नवंबर 2019

क्यूं करनी हैं ..

क्यूँ करनी हैं 
शहतूतों के दौर की बातें
पेड़ों पर उन
फूलों के बोर की बातें
जीवन के 
भूले बिछड़े छोर की बातें
रिश्तों में 
अटके मन के मोह की बातें
शर्तों में 
भटके नेहों के छोह की बातें
क्यूं करनी है
शहतूतों के दौर की बातें
दरियाओं पर
मस्तूलों के जोर की बातें
क्यूँ करनी है..

अक्षिणी 

जिया है..

शब्द संयोजन में क्या रखा है,
वो लिखा है जो जिया है..



अक्षिणी 

खबर नहीं है..

कुछ भी नहीं बचा है सब ख़ाक हो चला है,
हर सूं बिखर गए हैं उनको ख़बर नहीं है..

अक्षिणी 

हम तुम..

हैं साथ मगर दूर हम तुम,
अपने अपने दायरों में गुम..

हैं साथ मगर हैं  दूर दूर,
गो ख़ुदी के नशे में चूर चूर..

अक्षिणी 

बज़ाहिर..

बज़ाहिर प्यार का दुनिया में जो अंजाम होता है,
कोई मजनूँ,कोई हाकिम,कोई गुलफाम होता है..

अक्षिणी 

तेरी याद चली आई..

फिर वही मुश्किल है सरे शाम,
तेरी याद चली आई..

हुई कातिल है ये महफिल तमाम,
तेरी याद चली आई..

तुम न समझोगे मेरे अहसास,
तेरी याद चली आई..

कैसे उतरेगा ये वहशी तुफान,
तेरी याद चली आई..

फिर से जागे हैं वही अरमान
तेरी याद चली आई..

कैसे भूलेंगे ये तेरा अहसान,
तेरी याद चली आई..

कितनी महँगी थी वो पहचान,
तेरी याद चली आई..

बिखरे बिखरे हैं मेरे जज्बात,
तेरी याद चली आई..



अक्षिणी

बुधवार, 16 अक्तूबर 2019

जी..

न ढूँढ अक्स किसी और के,
खुद आईना बन के जी..
यूँ नक़्श मंज़िलों के भूल के,
तू रास्ता बन के जी..

अक्षिणी 

सोमवार, 14 अक्तूबर 2019

मानवर..

हम पूछते हैं
अजन्मे बच्चों का लिंग
और पूछते हैं
दूधमूँहे अबोध का धर्म,
जानना चाहते हैं
शवों की जात
और कहते हैं 
स्वयं को मनुष्य
क्यों ..?

अक्षिणी

दायरे..

हाँ मुझे भी मुझ सा ही रहने दो
न तुम बदलो न हम
अपने मन की करने दो
मगर अर्थ क्या जो
विलग किनारों  से बहते आएं
साथ हो कर भी सदा
अपने दायरों में जीते आएं
नेह का दरिया
हमें छू कर गुजर जाए
स्नेह का सोता कभी
समंदर न बनने पाए
पर हाँ
तुम तुम रहो मैं मैं
कभी हम न होने पाएं..

अक्षिणी

गुरुवार, 22 अगस्त 2019

झकझक

इक खूबसूरत कशमकश है ज़िंदगी,
क्यूं ख़्वाहिशें दफन करें..?
कभी सेहरां तो कभी गुलशन ज़िंदगी,
मुस्कुरा कर बसर करें..
तुम कश्तियों की बात कइरते हो,
आँसू किनारों पे ढलक आते हैं..
-अक्षिणी

शुक्रवार, 26 जुलाई 2019

बढ़ी चलो..

बढ़ी चलो,बढ़ी चलो
पहाड़ सी बढ़ी चलो

यूं बढ़ो कि उम्र हो,
फेल सारे यत्न हो
घटो नहीं छँटो नहीं
यूँ डटो कि सत्य हो,
झूठ सी बढ़ी चलो

अमीर हो गरीब हो,
भेद ना करो कभी
संतरी या के मंत्री हो,
वायु सी बढ़ी चलो

दौड़ से डरो न तुम,
भार से भरी रहो
बढ़ी चलो बढ़ी चलो
ओ तोंद तुम बढ़ी चलो

अक्षिणी

किश्तों के रिश्ते..

किसी के हिस्से में
रिश्ते आते हैं,
किसी के हिस्से में
 किस्से !!
 किसी के हिस्से में
हिस्से आते हैं,
किसी के हिस्से में
किश्तें !!


अक्षिणी

पहली बारिश

आज टिन पर
रिमझिम की थाप पड़ी है..
 इस सावन की
 पहली मल्हार छिड़ी है..
 नाच उठी हैं छम छम
पायल बूँदों की..
झूम रहे हैं घन घन
बादल बरखा के..
 आज पहली बारिश है..

अक्षिणी..

कमज़र्फ हम..

हर शाम कटघरे में पाते हैं खुद़ को..
उठाया करते हैं सवाल,
रुबरु ख़ुद के ख़ुद पर..
 मुद्दई भी हम,
 मुंसिफ भी हम..
हैं पेशकार भी,
और जल्लाद भी..
कर दिया करते हैं,
 सर कलम रोज़..
 और सुबह फिर
 उठ खड़े होते हैं कमज़र्फ..
एक नई , फौज़दारी के लिए..

अक्षिणी

अपनी धुन में..

हकीकतों से जूझता है रोज वो..
बस ख्वाबों ख़्यालों में जीता है..
सच से भागता नहीं है,
चंद लम्हे चुराता है..
जीता है चंद मुस्कानें उम्मीद की..
शब्दों का चितेरा है वो,
कविताओं में जीता है..
बेखबर दुनिया जहान से,
अपनी धुन में मस्त मगन..

अक्षिणी

शनिवार, 22 जून 2019

एकाकी..

प्रेम में पराजित हुई नारी
त्याग देती है खुशियाँ सारी
बदल जाती है नागफनी में
ओढ़ लेती है
विषैले काँटों का अभेद्य आवरण..

खो देती है वाणी से कोमलता नारी सुलभ
जीती है भीतर बाहर
बस एकाकी बन
निस्पृह निर्भेद्य सदैव
नर मरीचिका से दूर ।

अक्षिणी

शुक्रवार, 14 जून 2019

बरसात के टोटके..

बात गरमी की रोज निकलती है,
बरसात की चाह भी तड़पाती है..
बादल भी तैरते से लुभाते हैं मगर..
ये मौसम है कि बस में नहीं आता..

आदमी बहुत कुछ साध चुका है मगर अभी भी बहुत कुछ उसकी शक्ति के परे है..बरसात भी एक ऐसी ही मृगतृष्णा है..
हमारे देश की बात करें तो वैदिक काल से ही वर्षा को साधने की कोशिश की जाती रही है..कभी यज्ञ से तो कभी हवन पूजन से..तो कहीं राग मेघ मल्हार से वर्षा का आवाहन किया जाता रहा है..जलदेवता वरुण एवं बरसात के देव इन्द्र का आराधन किया जाता रहा है..
बरसात बुलाने के टोनो और टोटकों का तो कहना ही क्या.देश के हर हिस्से में अलग अलग हैं.बंगाल में मेंढकों की बड़ी धूमधाम से शादी कराई जाती है.अभी कल परसों ही ऐसी एक शादी सुर्खियों में थी. तमिलनाडु और केरल में केले के पेड़ों का ब्याह कराया जाता है कि इंद्र देव प्रसन्न हों..
मध्य भारत में बरसात बुलाने के लिए कागज़ की कश्तियाँ जलाशयों में तैरायी जाती हैं..कहीं कहीं कपड़े की गुड़ियाएँ बना कर उनका विवाह भी कराया जाता है..
राजस्थान में कपड़े की गुड़िया को बाँस पर बाँध कर गीत गाते हुए पानी में विसर्जित किया जाता है..किसान सूखे खेतों में सामूहिक गोठ करते हैं और गीत गाकर वर्षा को बुलाते हैं.. देवा मेघ दे, मेघ दे, पाणी दे,गुड़धानी दे..
 गुजरात में टिटहरी को ढूँढा जाता है..कहते हैं कि यदि टिटहरी अंडे दे देती है तो बरसात आने वाली है..मोर का बोलना तो खैर बरसात के आने की सुनिश्चित पूर्व सूचना है..
अथिरात्रम् भी ऐसी ही 4000 वर्ष पुरानी याज्ञिक परंपरा है जिससे वातावरण पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है..आधुनिक काल में इसे तीन बार संपन्न किया गया है..1975 में पंजाल, 1990 में कुन्डूर और 2006 में किजाक्कनचेरी में ...पाश्चात्य वैज्ञानिकों एवं शोध संस्थानों के तत्वावधान में ..
लेटिन अमेरिका में किसान खुले आसमान के नीचे खड़े हो कर गैब्रियल एवं पोसैडन को प्रसन्न करने के लिए मंत्रोच्चारण करते हैं वहीं उत्तर अमेरिका के कुछ कबीले आज भी वर्षा नृत्यों का आयोजन करते हैं.चीन में वर्षादेव यिंग लोंग को रिझाने के लिए ड्रैगन डाँस किया जाता है..
थाईलैंड का एक मजेदार किस्सा है एक बार जब बहुत दिनों तक बरसात नहीं आई तो लोगों ने परंपरानुसार एक जीवित बिल्ली को विभिन्न पवित्र स्थानों की यात्रा करवा कर वर्षादेव को मनाने की सोची..किंतु पशु प्रेमी लोगों के डर से उन्होंने असली बिल्लीकी जगह एक खिलौना बिल्ली लेने की सोची.
आखिर में डोरेमोन की शक्ल की खिलौना बिल्ली की मदद से यह कार्य संपन्न किया गया.. बरसात अभी तक नहीं आई है..😆 क्या आप कुछ अलग करते हैं बरसात को बुलाने के लिए..? हमें बताइए..

अक्षिणी

ज़िक्र-ए-सवाल..

किसी को फ़िक्र-ए-जवाब ने मारा,
कोई बेचारा ज़िक्र-ए-सवाल से हारा..

अक्षिणी

पत्रकार..

उम्र भर बजाते रहे कोर्निश ये जनाब,
कहलाते रहे दरबारी पत्रकार..
आखिर अब याद आया इन्हें दस्तार,
जब सड़क पे आ गए इनके सरकार..

अक्षिणी

भेड़िये हो गए हैं हम..

आखिर कहाँ चुके हैं हम,
कि वहशी हो गए हैं हम..
आदमी के नाम पर लानत
गिद्ध भेड़िये हो गए हैं हम..

हाय री मुई चाय..

हाय री मुई चाय,
अब ये मुझे जरा न भाए..

बस अभी ही छोड़े हैं..
पतले होने को दौड़े हैं..

चाय की लत मोहे ऐसी लागी,
छ: कप रोज पीती थी अभागी..

वजन पचहत्तर हुआ तो जागी,
चाय छोड़ अर ग्रीन टी पे आगी..

पेट ढोलकी हुआ है ऐसे,
मास नौवां पूरा हो जैसे..

गर्दन दिखती लठ्ठों जैसी,
बोडी हो गई पठ्ठों जैसी..

दोनों भुजाएं जो हुईं बलशाली,
छोड़ के टी ग्रीन टी अपना ली..

अक्षिणी

आज भी..

हम आज भी आहें भरते हैं,
उस चाँद की चाहें करते हैं..
परियों के सपन में जीते हैं,
तारों की चाहत में मरते हैं..
हाँ आज भी मेंढक
राजकुँवर बन जाते हैं..
हाँ आज भी हमको,
जादुई सपने भाते हैं..

अक्षिणी

वाह री ममता..

वाह री ममता बिन ममता की,
जरा न सुनती क्यूँ जनता की..

डाक्टर से ये खार है खाए,
गुंडों को ये खूब बचाए..

भारत इसको जरा न भाए,
रोहिंग्यों को गले लगाए..

ये ना बोले बोली समता की,
इसे लहर लगी बस सत्ता की..

लगता है अब नाश है आया,
बुद्धि विवेक से हाथ छुड़ाया..

अक्षिणी

बुधवार, 5 जून 2019

शिखर तक..

हाँ तुम शिखर तक जाना,
शीर्ष पर ध्वज फहराना..
नभ का आँचल छू जाना,
फिर लौट नींव को आना..

चट्टानों में राह बनाना,
पर्वत से तुम ऊँचे जाना..
सूरज से भी आँख मिलाना,
फिर लौट नीँव को आना..

तुफानों में शीश उठाना,
सपने सारे सच कर जाना..
धरती माटी नहीं भुलाना,
लौट के फिर तुम नींव को आना..

अक्षिणी

मंगलवार, 21 मई 2019

कीमत..

आज नहीं तो कल मानेंगें
मगर तब तक हम
सच को झुठलाएंगे
 जब तक ना हम
लतियाए जाऐंगे
धकियाए जाऐंगें
हम उनको गले लगाऐंगे
सच को नकारेंगे
स्वयं को छलते जाऐंगे
जब तक ना मारे जाऐंगे
उदारता की झोंक में 
मुँह की खाएंगे
अपने ही घर से खदेड़े जाऐंगे
निरपेक्ष रहेंगे
और नपुंसक बन जाएंगे.

 अक्षिणी

तेरी खातिर..

क्षमा कर देना हमें..
 नहीं छोड़ पाएंगे
सारी दुनिया तेरी खातिर.
नहीँ भूल पाऐंगे
ये गलियां तेरी खातिर.
 नहीं भूल पाएंगे
 दुनिया के गम तेरी खातिर.
माँ के हाथ की रोटी
तेरी खातिर.
 और वो बापू की झिड़की
तेरी खातिर.
 वो बहना के बोल.
 टूटी दुछत्ती की खिड़की
तेरी खातिर.
माफ कर देना हमें.
जुटाने है
चंद टुकड़े अभी..
 बनानी है चार दीवारें अभी..
छोटे की किताबें बाकी हैं..
छोटी की जुराबें भी फटी हैं..
फिर कुछ माँ के भी सपने हैं..
जो मेरे भी अपने हैं..
 इसलिए मेरी दोस्त ..
 माफ कर देना मुझे..
भूल जाना मुझे..

व्यर्थ है भागना ..
परछाइयों की ओर..
 नियमों को तोड़ अकेले
किसी कोने में छुप
 ख़ुद के लिए
चुपचाप हाशियों पे
जीने की खातिर
इसलिए
लौट चलते हैं
अपनी अपनी दुनिया में..
और जीते हैं सब की खातिर..

अक्षिणी

सार्थक

नव का हो निर्माण सार्थक
निजहितचिंतन हो गौण जहाँ
मुखरित हो सर्वजन हित
सर्वजन सुख जहाँ सर्वदा

नव का हो निर्माण..
निस्वार्थ रहे जब सोच सदा
सत्यनिष्ठ हो एकनिष्ठ हो
सत्पथ हो संधान जहाँ

नव का हो निर्माण..
निरपेक्ष हो निष्पक्ष सदा साथ
चलें साथ बढ़ें
राष्ट्रहित रहे जो लक्ष्य सदा..

अक्षिणी

गुरुवार, 9 मई 2019

दो कौड़ी

दो कौड़़ी की औकात है यारों,
वही गिनते हैंं वही गुनते हैं..
मोतियों के ढेर से हर बार,
वही ईमान की दो कोड़ियाँ चुनते हैं..

अक्षिणी

सोमवार, 6 मई 2019

लौट आओ..

स्त्री
 तुम स्त्री हो कर भी
 पुरुष से कहीं ज्यादा हो..
 हाँ मगर स्त्री तुम
स्त्री रही कहाँ हो..?
 पुरुष बनने की चाह में
 खो रही हो अपना स्त्रीत्व..
 माँ तो आज भी हो मगर
खो चुकी हो मातृत्व का ममत्व..
विवेकशून्य हो
 किए जा रही हो अनुकरण
भूल कर अपना नैसर्गिक महत्व..
 लौट आओ क्योंकि
व्यर्थ है ये दिशाहीन विचरण..
कब तक खोजती रहोगी
समानता के फेर में
 स्वच्छंदता का अवतरण..
 श्रेष्ठ हो
सो छोड़ दो पुरुष बनने का
ये आत्मघाती यत्न



अक्षिणी..

बुधवार, 24 अप्रैल 2019

सीख लिया है..

किताब में लिखा दर्द
जब बहने लगे तेरी आँखों से

किताब के पन्नों पर बिखरे काँटे
जब चुभने लगे तेरे पैरों में

किताब की रवानी ज़िंदा हो
थिरकने लगे तेरे मन में

किताब के हर्फ़ जब
घाव बन रिसने लगे तेरे तन से

किताब की बगिया के फूल
जब महकने लगे तेरी साँसों में

अंगार से दहकने वाले अच्छर
मशाल से सुलगने लगे तेरे दिल में

तो समझना
कि तुमने पढ़ना सीख लिया है..

अक्षिणी

शनिवार, 6 अप्रैल 2019

Write in vain..

Some write in rain
Some pour their pain
To my utter disdain
Some write in vain

Some write to heal
Some write to peel
Some write to deal
For just the very zeal

Some write to mend
Some write to fend
To mark the beginning
Some write the very end

Some rhyme to treason
Some rise to the season
And some like me write
for no rhyme or reason

That's Poetry my friend
 Just lets me go insane
It defines me in chaos
It keeps me of the bane

Akshini

सोमवार, 25 मार्च 2019

वो शादी की तस्वीरें..

वो शादी की तस्वीरें ..
अब पहचानी नहीं लगती,
वो चोरों का राजा तो लगता है..
मैं रूप की रानी नहीं लगती..

कुपोषित सिमटी
कोमल सी जो बैठी है
ये खाती पीती मुटियायी सी
महारानी नहीं लगती..

अनुभव से जो हासिल है,
बालों में चांदी नहीं दिखती..
मेरे बच्चों के बापू की
ये तस्वीर सुहानी नहीं लगती..

देखी सी तो लगती है मगर
अपनी ये कहानी नहीं लगती..
भोली भाली अब भी है मगर
ये लड़की वो दीवानी नहीं लगती..

वो शादी की तसवीरें अब,
पहचानी नहीं लगती..

अक्षिणी..

गुरुवार, 21 मार्च 2019

हँसगुल्ले

होली है..
हँसोड़ो को हँसगुल्ले मिलेंगे
बतोड़ो को बतगुल्ले
लतोड़ो को लतगुल्ले
मिठोड़ो को रसगुल्ले मिलेंगे
गपोड़ो को गपगुल्ले
दूर रहें मुँहफुल्ले सड़गुल्ले 
उन्हें मिलेंगे 
बड़कुल्ले के दही भल्ले ..
होली है..
~अक्षिणी

शुक्रवार, 15 मार्च 2019

अज्ञानी अक्षिणी..

अनुभूति और अनुश्रुति से
अक्षरों के अनुनाद की अनुगूँज तक..
कच्ची पक्की सी हैं मेरी कविताएं..
अभिभूत हूँ अनुकृपा से,
अनादि अनंत की..
मैं अकिंचन प्राणी..
अज्ञानी अक्षिणी  ..

बुधवार, 27 फ़रवरी 2019

मरणासन्न..

एक बार फिर
खुली बाहें
अधरों पर मुस्कान लिए
आलिंगन को आतुर
राहों में पलकें बिछाए
स्वागत को पुष्पहार लिए
आत्ममोहित रूपगर्विता
निर्लज्ज खड़ी है
देशद्रोहियों के लिए
आरती का थाल लिए
येन केन प्रकारेण
सत्ता सिद्धि को लालायित
साँझ की वेला में
मरणासन्न कांग्रेस ।

अक्षिणी

मैं..

अच्छा दिखना मेरी खुशी है..
इसलिए बनती सँवरती हूँ..
अच्छा पहनती हूँ..
अच्छा कहती सुनती हूँ..
इक्कीसवीं सदी है..
लोग अगर सोच न बदलें
तो वो उनकी समस्या है..
मेरी नहीं..
आज की नारी हूँ..
अपनी शर्तों पर जीती हूँ..

अक्षिणी

सोमवार, 18 फ़रवरी 2019

है आँख नम..

है आँख नम
और खोने का गम
 हैं शब्द कम
और मौन स्तब्ध
बस शोक में तुम
फ़कत रोना नहीं
और जोश में
होश खोना नहीं..
बह गया जो रक्त
वो याद रखना..
छोड़ना नहीं ..
चीर बैरियों की
लाश रखना
भूलना नहीं
इस शहादत की लाज रखना..
है आँख नम
और शब्द कम..

#नमन

अक्षिणी

वीर बण्यो रणबीर..


ऊँचे कद का बाँकुरा,
छळकी माँ री पीर..
छोटो हिवड़ो ना कराँ,
वीर बण्यो रणवीर..

अक्षिणी

अनजान बन जा..

दूर कोई रो रहा है
धैर्य अपना खो रहा है
हिचकियों के साथ
अंतिम साँस कोई ले रहा है
शून्य से आवाज़ आई
मोम से पाषाण बन जा
जान कर अनजान बन जा
मगर कब तक?
है जरूरी कि आज तू संगीन हो
संधान बन जा
वज्र हो अग्नि बाण बन जा
सब्र तज
मौत की मशाल बन जा.
रुद्र सम
फिर शत्रुओं का काल बन जा.

अक्षिणी



#नमन
जाने कितने लाल ये लील गया कश्मीर,
पाण चढ़ाओ बाण को,जीत लो कश्मीर..

शांति..

आत्मसम्मान न हो तो कोई क्रान्ति नहीं होती,
मरघट की शान्ति कभी शान्ति नहीं होती..

घिरे हुए सिंह का आर्तनाद सुन काँपते हैं प्राण मित्र,
ठहरो जरा, होने को है आतताइयों का त्राण शीघ्र ..

अक्षिणी

परिवर्तन..

परिवर्तन एक शाश्वत सत्य है..
जो इसे स्वीकार नहीं करते ,
इसके अनुसार नहीं ढलते,
शनै: शनै: लुप्त हो जाते हैं..
अपना अस्तित्व खो देते हैं..
परिवर्तन ही प्रगति है,
जो बदलते नहीं..
जड़ हो जाते हैं..
ठहरे पानी की सी,
सड़ांध मारने लगते हैं..

राम तुम्हें फिर आना होगा..

हे राम तुम्हें फिर आना होगा,
नव संकल्प उठाना होगा..
यह कलयुग भी दायित्व तुम्हारा है,
इसको भी पार लगाना होगा..
देखो कितने रावण उग आए हैं,
दानव के वंशज मानव बन आए हैं..
नई सीता को अपनाना होगा,
हे राम तुम्हें फिर आना होगा..
देखो कितनी आँखें सूनी हैं
कैकेयी की मंथरा से संधि है
कौशल्या को धीर बँधाना होगा..
हे राम तुम्हें फिर आना होगा..
कितने केवट व्याकुल हैं..
कितनी प्रतीक्षाएँ पत्थर है?
सबका भार उठाना होगा
हे राम तुम्हें फिर आना होगा..

~अक्षिणी

रविवार, 10 फ़रवरी 2019

जो अभावों में पले..

जो अभावों में पले और,
चाँद को माँगा किए..
आँधियों में जो खिले और
धूल में महका किए..

जो धूप को तरसा किए,
और छाँव को चाहा किए..
धुर अँधेरों से लड़े जो,
इक दीप हाथों में लिए..

वक्त की सख़्ती ने देखो,
स्वप्न मंजिल के जगाए..
डूबती कश्ती ने जिनको,
ख़्वाब साहिल के सजाए..

छूटते यूँ बेबसी में,
हो गए सपने पराए..
लूटते यूँ बेकसी में ,
दर्द के अपने ये साए..

जो धूप को तरसा किए,
और छाँव को चाहा किए..

ढूँढते जो पत्थरों में,
जीत के आखर सुनहले..
गूँजते कातर स्वरों में,
धूल के पल्लव नवेले..

जो धूप को तरसा किए,
और छाँव को चाहा किए..

टूटती उम्मीद को अपनी
अब वो दें सहारे..
रूठती तकदीर को अपनी
अब वो ख़ुद सँवारें..

जो धूप को तरसा किए,
और छाँव को चाहा किए..

अक्षिणी

रविवार, 3 फ़रवरी 2019

वक्त यूँ ..

जो वक्त यूँ गुज़र गया तो क्या रह जाएगा,
सिलसिला हो दरगुज़र,हादसा रह जाएगा..?