उजियारों के कांधों पर
अंधियारों के कर्ज़ हैं भारी,
धूप न हो तो छांव न महके
शाम नहीं तो सुबह बेमानी..
अक्षिणी
उजियारों के कांधों पर
अंधियारों के कर्ज़ हैं भारी,
धूप न हो तो छांव न महके
शाम नहीं तो सुबह बेमानी..
अक्षिणी
आधी हो या पूरी हो ,
सुखी हो या गीली हो
रंग के जलवे क्या कहिए,
लाल हरी या पीली हो..
इस की पूड़ी और पकौड़ी ,
इसकी बर्फी इसकी कचौड़ी
इसके आगे सब फीके,
ऐसी है ये स्वाद की कौड़ी..
आधी रोटी जब मिल जाए,
मानुस इसको लेने धाए..
ये न गले तो बात न बनती,
पीते जाएं धापे धपाए..
स्वाद ये देखो बढ़ कर बोले,
मा की हो या मखनी
जादू इसका चढ़ कर बोले,
पुरबी हो या दखनी
दाल जले या दाल गले,
इसके तड़के बनें बराती
इसके दामों तख्ते पलटे,
इसके भड़के कुरसी जाती
दाल का दर्शन जो भी जाने,
दाल दाल को वो पहचाने..
#DalDivas
अक्षिणी