बुधवार, 22 जनवरी 2020

कसरत..

हाथों पर क्रीम लगाना,
बैग में दस्ताने ढूँढ़ना,
उन दस्तानों को पहनना,
फिर फोन की घंटी बजना,
दस्ताना उतार उसे उठाना,
फिर से दस्ताना पहनना,
साधारण सी बात है ना?
और ये सब कुछ 
स्टीयरिंग पकड़े हुए करना..?

अक्षिणी 

शुक्रवार, 17 जनवरी 2020

वक्त वक्त की बात..

आज मिले थे वो
मिले तो खैर क्या 
बस दिखे थे वो
सब कहीं थे वो
खिली मुस्कान लिए
गालों पर रंग लाल लिए
उम्मीद से देखते हुए
नजर को तरसते हुए
सब चले जा रहे थे 
बिना कोई भाव दिए
कौन पूछता?
कल
उड़ रहे थे हवा में जो
आज
ज़मीं पे आ गिरे
वक्त किसी का कब हुआ 
फिर वो
आदमी हो या टमाटर..😋

अक्षिणी 

रविवार, 12 जनवरी 2020

कुछ लोग..

गलतफहमी में इस तरह जीया करते हैं कुछ लोग,
शायरी के नाम पर सियासत किया करते हैं कुछ लोग..

शिक्षा के नाम पर बस ऐश किया करते हैं कुछ लोग
यूँ मुल्क का नमक अदा किया करते हैं कुछ लोग..

किस कदर एहसानफरामोश हुआ करते हैं कुछ लोग,
हुकूमत ना मिले तो दंगे किया करते हैं कुछ लोग..

वतन के लिए खूं की दुहाई दिया करते हैं कुछ लोग,
वक्त आए तो दामन छुड़ा लिया करते हैं कुछ लोग..

शेर कहते हैं कभी, गज़ल कहा करते हैं कुछ लोग,
देश की बरबादी पे नज़्म पढ़ा करते हैं कुछ लोग..



अक्षिणी 

शनिवार, 4 जनवरी 2020

O beloved country of mine..

O beloved country of mine
You have a character so divine..

The land of yours is so pure
The skies of yours so sure
The woods too deep and green
For years of lives to endure

The hills of yours are so old
The snow of centuries to uphold
The plains are so calm and cool
To hold the mysteries untold

The songs of rivers to chime
With the seas of breeze n brine
O thy tales of changing time
Life and death of reason n rhyme

O beloved country of mine
You have a character so divine..

Akshini

शुक्रवार, 3 जनवरी 2020

हास्य कविता..

व्याकरण के गाँव में जब
इक हास्य कविता आई
हाथ घूँघट थाम बैठी
सिकुड़ी,सकुची और शर्माई
सर्व रूप श्रृंगार किए वो
नेह मिलन की आस लाई
नववधु थी गाँव की वो
होनी ही थी मुँह दिखाई

फिर चंद्रबिंदु अनुस्वार की बारी
फिर अलंकार ढूँढे सब नर नारी
वर्ण और व्यंजन भाव पे भारी 
बिन विराम के देखो दे दे तारी
हास न जानें, परिहास न मानें
मर्म न समझें, दें मात्रा की दुहाई

व्याकरण के गाँव में जब 
इक हास्य कविता आई..
नववधु थी वो गाँव की
खूब भई फिर मुँह दिखाई..

नये घर में वो अबला नारी
लाज की मारे चुप थी बेचारी
झुक झुक देखो पैर लगे जो
संधि कर कर मंशा वो हारी
खूब थी उसने जुगत लगाई
फिर भी देखो समझ न पाई

व्याकरण के गाँव में जब
इक हास्य कविता आई
मर्ज़ी की जो चाल दिखाई 
भूल गए सब मुँह दिखाई..

अक्षिणी 

बुधवार, 1 जनवरी 2020

चाय के दोहे..

कड़क हो या कड़वी,बिस्तर में मिल जाय ।
चाय वही अच्छी जो कोई दूजा देय बनाय ।।

हीरा मोती सोना चांदी,कुछ न मुझको भरमाए ।
एक अदद चाय मिले,मुखड़ा खिलखिल जाए।।

पीस के लौंग इलायची,अदरक लई कुटाय ।
पीण वारो आन मिले, चाय देऊं चढ़ाय।।

साथी सगळा हामळ भरे, बैठा नाड़ हलाय ।
कोई न छोड़े बैठको, चाय किंकर बण पाय ।।

चाय बणावो सब कहे, दूध न लावै कोय ।
ब्लैक टी के नाम पर, भृकुटि तिरछी होय ।।

ग्रीन टी के नाम को , खूब मचावै शोर ।
घास-फूस ने चाब के, भैंस ना पतली होय।।


अदरक इलायची डार के,चाय लई बनाय।
फिर मोबाइल को टापते, फ़्रिज में दई धराय।।

यों सूरज के ताप सों,चाय रही घबराय।
गरम चाय तजि सब,अपनाए ठंडी चाय।।

यो तुम मोसे ना कहो, कि चाय दियो भुलाय,
चाय बिना के जीवणो,जनम अकारथ जाय..




अक्षिणी