इस मुल्क के बाशिंदों की आँखें खुलेंगी,
नकली चेहरों के कुछ नकाब तो हटा दो।
चला रहे हैं ये जिन कंधों पे रख बंदूकें ,
असलियत इनकी किसानों को दिखा दो।
नफरतों की खूब जो कर रहे हैं सियासत,
इन्हें होश में लाओ, हथकड़ियाँ लगा दो।
~अक्षिणी
इंकलाब वही लाते हैं
जो अकेले चने होते हैं..
भीड़ तो चनों के ढेर सी
भाड़ में भुन जाती है..
इसलिए,सुलगते रहो,
अकेले हो तो क्या..?
बुझने न दो इस आग को,
भाड़ क्या..
हम पहाड़ चीर दें..
~अक्षिणी..