सोमवार, 21 जून 2021

सियासत..

इस मुल्क के बाशिंदों की आँखें खुलेंगी,
नकली चेहरों के कुछ नकाब तो हटा दो।

चला रहे हैं ये जिन कंधों पे रख बंदूकें ,
असलियत इनकी किसानों को दिखा दो।

नफरतों की खूब जो कर रहे हैं सियासत,
इन्हें होश में लाओ, हथकड़ियाँ लगा दो।

~अक्षिणी

सोमवार, 14 जून 2021

भीड़ से अलग..

इंकलाब वही लाते हैं
जो अकेले चने होते हैं..
भीड़ तो चनों के ढेर सी
भाड़ में भुन जाती है..
इसलिए,सुलगते रहो,

अकेले हो तो क्या..?

बुझने न दो इस आग को,
भाड़ क्या..
हम पहाड़ चीर दें..

~अक्षिणी..

रविवार, 6 जून 2021

क्षमाएँ..

क्षमाएँ..
जो प्रतीक्षारत हैं सदियों से
जो पंक्तिबद्ध हैं सदियों सें
क्षमाएँ..
अनभिज्ञ काल की गतियों से
बोझिल मन की बदियों से
क्षमाएँ..
जो माँगी नहीं गईं कभी
जो चाहीं नहीं गईं कभी
क्षमाएँ..
जो लज्जित हैं सुधियों से
जो शापित हैं त्रुटियों से
क्षमाएँ..
जो पहुँची नहीं गंतव्य को
जो समझी नहीं मंतव्य को
क्षमाएँ..
जो प्रतिक्षित थी नहीं कभी
जो अपेक्षित थी नहीं कभी
क्षमाएँ..
जो क्षमा माँगती रहेंगी सदा
जो क्षमाप्रार्थी रहेंगी सदा

~अक्षिणी..


गूँज रहा है कौन..?

अनहद के इस नाद में, गूँज रहा है कौन
महाकाल के काल में,काल खड़ा है मौन..

~अक्षिणी