शिकंजी उदयपुरी..
शुक्रवार, 15 अक्तूबर 2021
कब तक..?
कब तक..?
कब तक टालोगे..
कब तक..?
कब तक राह तकोगे..?
कब तक..?
कब तक चुप रहोगे..?
कब तक..?
कब तक बस करोगे..?
और तमाशा कब तक..?
घोर निराशा कब तक..?
इन दामों नहीं हमें स्वीकार..
करना होगा अब प्रतिकार..
कब तक..?
~अक्षिणी
दशहरा..
किस बात का दशहरा?
नपुंसकों की जय है
नरभक्षियों का समय
न राम ने आना
न रावण का मारा जाना
न गीता का गान कहीं
न सीता का मान कहीं
रावण तो रावण
पुतला तक न जला पाना
न देवियों को चिंता कोई
न देवों का जग से नाता
किस बात का जय घोष?
कैसा धर्मक्षेत्र?
कैसा धर्मयुद्ध?
किस बात का दशहरा?
~अक्षिणी
अन्नदाता हैं जी..
अन्नदाता हैं जी..
रास्ता रोकेंगे
बसें जलाएंगे
भिंडरावाले की जय करेंगे
कारें तोड़ेंगे
सर फोड़ेंगे
लाल किले को मटियाएंगे
तारें काटेंगे
तिरंगा उतारेंगे
सिपाही को धकियाएंगे
जनता को लतियाएंगे
हाथ काट कर लटका देंगे
लालच में अर्थी उठवा देंगे
हे राम!
कब तक अन्नदाता कहे जाएंगे?
~अक्षिणी
दुहाई..
है अगर ये अपनी सरकार तो
पराई क्या होगी?
राजधानी में चल रही तलवार तो
दुहाई क्या होगी?
भड़कने दी जो आग,अब
कड़ाई क्या होगी?
पाल लिए बाहों में साँप,
लड़ाई क्या होगी?
उठ रही नासूर से सड़ांध,
दवाई क्या होगी?
भलाई की खा रहे मात,
बुराई क्या होगी..?
~अक्षिणी
नई पोस्ट
पुराने पोस्ट
मुख्यपृष्ठ
सदस्यता लें
संदेश (Atom)