अन्नदाता हैं जी..
रास्ता रोकेंगे
बसें जलाएंगे
भिंडरावाले की जय करेंगे
कारें तोड़ेंगे
सर फोड़ेंगे
लाल किले को मटियाएंगे
तारें काटेंगे
तिरंगा उतारेंगे
सिपाही को धकियाएंगे
जनता को लतियाएंगे
हाथ काट कर लटका देंगे
लालच में अर्थी उठवा देंगे
हे राम!
कब तक अन्नदाता कहे जाएंगे?
~अक्षिणी
अति सुन्दर तथा सामयिक रचना. ये अन्नदाता नहीं "कष्टदाता" हैं !
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