शुक्रवार, 22 मई 2020

हम..

पिछड़े सही हम 
क्योंकि 
पिघले नहीं हम..

अकड़े सही हम,
क्योंकि 
उखड़े नहीं हम..

झगड़े सही हम,
क्योंकि 
बदले नहीं हम..


उछले नहीं हम,
क्योंकि 
छिछले नहीं हम..


अक्षिणी 



गुरुवार, 21 मई 2020

पेट की बात..

पापी है तो क्या हुआ पेट तो आपका अपना है।
इसका खयाल रखें. इसे आराम दें।

प्रतिदिन नियमित रूप से पाँच-छ बार पूरा भरें और भरते ही लेट जाएं।
ऊर्ध्वाधर अवस्था में रख इस पर अत्याचार कदापि न करें।

महीने भर बाद इसके विकास की समीक्षा करें और आवश्यकता हो तो खुराक बढ़ाएं। 
एकरसता से कोई भी ऊब सकता है।
विविधता में ही जीवन का आनंद निहित है।
पेट भी यही चाहता है। 
प्रतिदिन नाना प्रकार के व्यंजनों से उदराभिषेक करें।
इसे तनिक भी बोरियत महसूस न होने दें।
इसका खयाल रखें।
ये आपकी शारीरिक समृद्धि में वृद्धि करेगा क्योंकि यह आपकी आर्थिक संपन्नता का प्रतीक है।

यूँ भी कोरोना की सबसे बड़ी मार इसी पर पड़ी है..
पान और पानपराग दोनों के स्वाद से वंचित है बेचारा..
कहाँ "संडे से संडे" पूरे सप्ताह समोसे कचोड़ी  खाता था आज रायते की बूँदी को तरस गया है।
जलेबी इमरती के दोने समान गति से चाटता था.. 
संभवतया अब देखने को मिलें..

तीन तरह के गोलगप्पों में नौ तरह के पानी से चटखारे लिया करता था.
उदर का सारा तंत्र ही गड़बड़ा गया है,बेचारे के ए-कोली से जेड-कोली तक के बैक्टीरिया तड़प रहे हैं.
सुनिए उनकी कातर पुकार और मौन आर्तनाद।
रोज खिलाएं कुछ चटपटा और मजबूत करें विश्वास सहअस्तित्व में।
साथ दें अपने उदर का।

आज जैव विविधता दिवस है..कुछ पुण्य कमाएं..
अपने पेट के सूक्ष्म जीवों को साठ भोग खिलाएं..
(56 का प्रयोग वर्जित है क्योंकि उसे सुनते ही पिद्दियों को अतिसार हो जाता है और हम चिकित्सालयों पर भार नहीं बढ़ाना चाहते..)

उदर समृद्धि के अन्य उपायों के लिए अनुसंधान करें और अपने बहुमूल्य सुझाव बाँटें।(कहना पड़ता है,परंपरा है)
समझ तो गए होंगे आप!
निकट भविष्य में उदरामृत का ठेला लगाने की योजना है..
प्रधानमंत्री लघु उद्योग प्रोत्साहन के अंतर्गत ऋण स्वीकृत हो जाए तो..

याद रखिए पेट है तो हम हैं..
पेट से ही अपना दम खम है..
प्रगति और वृद्धि मनुष्य का जन्मसिद्ध अधिकार है.
शरीर की उर्ध्व वृद्धि रूक जाने के बाद क्षैतिजक विकास करें..
आप सभी को सपेट शुभकामनाएं।

अक्षिणी 

बुधवार, 20 मई 2020

अपराधी..

न राज का भय
ना समाज का भय
ना आत्मा-परमात्मा का भय
न भूत का भय
न भविष्य का भय
न कर्म का न धर्म का भय
आज,आज में लीन
भयहीन पथभ्रष्ट 
निर्लज्ज स्वलीन
आत्ममुग्ध 
आत्मघाती 
मनुष्य 
अपराधी तो है ही..

अक्षिणी 

मंगलवार, 19 मई 2020

कुछ कहें..

जो समझ पाएं तो क्या कुछ कहें,
ना भी समझ पाएं तो क्यूँ कुछ कहें..
जो ठहर जाएं तो बहुत कुछ कहें,
कह के गुज़र जाएं कि क्या कुछ कहें..

अक्षिणी ..

बुधवार, 13 मई 2020

मरुस्थल की बेटियाँ..

मरुस्थल की बेटियाँ 
खेजड़ी सी होती हैं 
सीधी सादी बेपरवाह
सब से बेखबर 
डटी रहती हैं बारहों मास
निरपेक्ष सहती हैं ताप 
और आँधी तुफान
खड़ी रहती हैं सर उठाए
अपनी अस्मिता लिए
कैक्टस के काँटों के बीच
जीवन रेत के अँगारों में 
संघर्ष के स्वरों में लीन..

अक्षिणी 

मंगलवार, 12 मई 2020

चाह..

नहीं..
नहीं कोई चाह बसंत तेरे वैभव की
तेरे कुसुमित सुमन सौरभ की
बस चाह तपित बनतरू सौष्ठव की
जो साध सका हो मुक्ति निर्मोह की..
🙏

अक्षिणी 
उमा आर्या की मूल कविता का हिन्दी अनुवाद। 

Don’t bring me the splendour of spring 
It’s glory is short lived! 
Give me the austere trees 
Composed in renunciation..

रविवार, 10 मई 2020

सपना..

हर आँख का सपना,
पहाड़ों की घाटियों पर,
हो घर अपना..
दूर से दिखती हो,
बल खाई तन्वंगी सी 
एक सड़क..
पास से गुजरती एक,
नीली सी एक नदी..
इसी उम्मीद में,
जिया करते हैं  रोज.. 
शहरों की माचिसों,
में रहने वाले लोग..

अक्षिणी

शनिवार, 9 मई 2020

शुकर है कि मुगल आए..

मुगल बहुत महान थे। उनके आने से पहले भारत एक सपाट मैदान था जहाँ कीड़े मकोड़े रहा करते थे। कुछ आदिवासी थे जो पत्ते लपेट कर जीते थे।
मुगलों को हम पर दया आई और वे ऊँटों पर लाद कर हिमालय को यहाँ  ले आए।
शेष तो आपको पता ही है कि कैसे खाड़ी से पानी ला कर गंगा जमुना बनाई गईं। 
मुगल अपने रेशमी चोगों में भर कर रेत लाए और उसे गुजरात और राजस्थान में बिखेरा ताकि थार का रेगिस्तान और कच्छ का रन बना..
आभार मानिए वरना क्या था हमारे पुरखों के पास..

मुगलों के आने से पहले भारत के आदिम लोग कोक्रोच और झिंगुर पकड़ कर कच्चा ही खाते थे..मुगल आए तो छकड़ों में लाद कर पेड़ लाए..फिर उन्होंने फूलों और फलों के पौधे लगाए..उन्हीं में से कुछ छकड़ों में वे आग भी लाद कर आए..उन्होंने हमें खाना पकाना सिखाया..

आप विश्वास नहीं करेंगे किंतु यह सत्य है कि मुगलों के आने से पूर्व हम रेंग कर चलते थे और रेंक रेंक कर इशारे से बात करते थे।
मुगलों ने हमें सीधे खड़े हो कर चलना सिखाया।
हम आभारी हैं कि उन्होंने हमें उर्दु भाषा सिखाई जिससे हमने पहले हिन्दी और फिर संस्कृत बनाई..

बेचारे मुगल कितने भले थे..
ईरान से सफेद मार्बल और लाल पत्थर लाए उसे मकराना और धौलपुर की खदानों में रखा..फिर निकाला और उसी से ताजमहल और लाल किला बनवाया वरना हम तो पेड़ों के नीचे रहते थे।

रणकपुर, दिलवाड़ा, उम्मेद भवन सब मुगलों का दिया है..रहीम और रहमान यहाँ आए तभी तो रैदास बने..रामायण और महाभारत भी उनके ही किसी ग्रंथ का अनुवाद होगा..
सुनने में तो यह भी आया है कि मुगलों के लाए बहाए पानी से हिंद महासागर और बंगाल की खाड़ी जैसी छोटी मोटी पोखरियों का इतना विस्तार हुआ..

मुगलों ने उठाई लहरें तो नीलगिरि और शिवालिक अस्तित्व में आए..

मुगलों के आने से पहले हमारे बच्चे और औरतें फालतू मक्खियां मारा करते थे..
मुगलों ने उन्हें अपने हरम में काम दिया..


भला हो मुगलों का जो हम दीन हीन गरीब भारतवासियों की सुध ली वरना हम तो अब तक लकड़ियां ही बीनते रह जाते..
ऋणी हैं हम..

🙏
अक्षिणी 

आँख नम..

है आँख नम और शब्द कम,
दग्ध ह्रदय में कितना मातम..
रीती झोली खाली दामन,
चुक गया क्या उसका मरहम..

मरहम का क्या कीजे 
जब न प्राण हम में.. 
क्या हरे संताप जब
ना बचे जान हम में ..


अक्षिणी 

शुक्रवार, 8 मई 2020

चलो..

चलो राष्ट्र के विकास को आग लगाएं, 
अर्थहीन मुद्दों को तूल दे मसला बनाएं..
चलो प्रगति के पहिए को तीली लगाएं,
मजदूरों के नाम फिर कोई दुकान लगाएं..

चलो प्रशासन की मुश्किलें बढ़ाएं,
देश की बनती को बिगाड़ आएं..
यहाँ वहाँ जहाँ तहाँ आग लगाए,
अर्थतंत्र की अर्थी को कांधा दे आएं..

चलो आज हम ये पुण्य कर आएं,
कामगारों को नये झंडे पकड़ाएं..
समृद्धि-रथ कहीं दौड़ ही न जाए,
इसके घोड़ों की नाक नकेल लगाएं..

तरक्की की राह कहीं खुल ही न जाए, 
राष्ट्रदेव को मंजिल कहीं मिल ही न जाए..
निर्माण के स्वर समूल राख कर आएं, 
चलो आज फिर नया कोई पलीता लगाएं..

अक्षिणी 

लगंतुक-बुझंतुक पुराण ..

आज उन की बात करते हैं जिनका योगदान हमारी सभ्यता को घटना प्रधान बनाने में प्रशंसनीय है..
यदि उनके अनुगामी न होते तो मनुष्य जीवन
अत्यधिक नीरस होता.
लगाई-बुझाई कला के पारंगतों को नारद जयंती की शुभकामनाएं..
यह एक ऐसी महत्वपूर्ण कला है जिसे अब तक इसका उपयुक्त स्थान नहीं मिला है..
चिर काल से चली आ रही इस परंपरा की आकस्मिकता के चलते ही जीवन नूतन बना रहता है..
आइए आज हम और आप मिल कर 64 कलाओं में सम्मिलित न कर इसके साथ किए अन्याय का अपराध बोध थोड़ा कम करें.. 
प्राचीनकाल की मंथराओं और शकुनियों से लेकर वर्तमान युग के सभी संजयों तक इनकी बड़ी ही समृद्ध परंपरा रही है..ये इतिहास पुरुष हैं जिनकी भूमिका की सराहना और प्रशंसा करने के स्थान पर इन्हें हेय दृष्टि से देखा जाता है..मनुष्य जाति का यह अपराध निंदनीय है..

इतिहास ने ही नहीं भाषा ने भी इनके साथ घोर अन्याय किया है..ऐसा कोई शब्द ही नहीं है जो इनके विस्तृत कार्यपत्रक यानि पोर्टफोलियो का प्रतिनिधित्व कर पाए..इसके उसके नामों से पुकारा जाना मुझे स्वीकार्य नहीं है..लगता है यह धृष्टता मुझ अकिंचन को ही करनी होगी।

चुगलखोर शब्द का सुझाव है किंतु यह इन कर्मठ महानुभावों को हेय दृष्टि से दिखाता है.
मेरा सुझाव है कि इनकी कार्य प्रणाली का ध्यान रखते हुए इन्हें लगंतुक-बुझंतुक कहा जाए.
कोई एक शब्द इनके कौशल का प्रतिनिधित्व  नहीं कर पाएगा.
आप के सुझाव आमंत्रित हैं किंतु अभी के लिए यह ठीक है।

लगंतुक-बुझंतुक वर्ग के व्यक्ति बड़े ही निस्वार्थ कर्तव्यनिष्ठ और परिश्रमी होते हैं।
एक धनुर्धर की तीक्ष्ण दृष्टि,तत्परता व मनोविज्ञान रखते हैं कि कब कौनसा संधान कहां करना है।
आप और मैं इनकी दिव्य दृष्टि की कल्पना भी नहीं कर सकते.मानव मन की इनकी समझ और दूरदर्शिता भी वंदनीय है.


बहुमुखी प्रतिभासंपन्न लगंतुक-बुझंतुक वर्ग
मानवीय संबंधों की क्रिया-प्रतिक्रिया में उत्प्रेरक का कार्य करता है।
अपने अदम्य साहस और अभूतपूर्व रणकौशल के चलते ये लोग स्वयं की रक्षा बखूबी जानते हैं..
घर गाँव शहर जल जाए परंतु इन पर आँच न आए..

ईश्वर भी निश्छल और निस्वार्थ लगंतुकों-बुझंतुकों की सहायता से अपना कार्य साधता है और अपयश मिलता है इन्हें.
यदि मिल्टन का स्वर्ग सर्परूपी शैतान के कारण न खोया होता तो संसार कहां होता?
इसलिए अपने आसपास के लगंतुकों-बुझंतुकों को पहचानें,उनसे दूरी रख उनका सम्मान करें।
नारायण नारायण।
🙏

अक्षिणी 

गुरुवार, 7 मई 2020

शिक्षकों की कुंठा..

एक गणित शिक्षक सदैव ऋणी रहेगा श्री #RiyazNaikoo का जिन्होंने गणित को आतंक के आकाश में अभूतपूर्व स्थान दिलाया..आज सारे विषयों में कुंठा की लहर व्याप्त है कि हाय हम न हुए..

प्रगति और उन्नति मनुष्य का नैसर्गिक अधिकार है।
विश्व के अनेक देशों में रक्तवर्णी धमाकों के क्षेत्र में अभियंताओं और  सॉफ्टवेयर वर्ग का वर्चस्व देख कर शिक्षक वर्ग में छाई हीनभावना को दूर करने का महत्वपूर्ण कार्य किया है श्री #RiyazNaikoo जी ने..
निशब्द हैं हम..!
आभार..!

शिक्षकों का आत्मविश्वास तो तभी हिल गया था जब तीन बरस पहले एक शिक्षक के नादान बेटे का मर्सिया दरखा बट्ट द्वारा पढ़ा गया.
हिंदुस्तानी फौज ने काम जो तमाम कर दिया उसका.
क्या दोष था बेचारे का?
मेहनत कर के हिजबुल में नाम रोशन किया था उसने.
आज देश का हर शिक्षक खुशी से फूला नहीं समा रहा.
प्रतिक्रिया देखिए..
हिंदी वाले -
ये गणित वालों की हर जगह आगे रहने की बीमारी कब जाएगी..?

अंग्रेजी वाले -
Now Mathematics teacher would always be served first..First come first served..

History teacher : 
 इतिहास साक्षी है गणित ने सदैव differentiation ज्यादा किया है
Integration कम..

केमिस्ट्री टीचर - 
मैन्यूफेक्चरिंग, R&D का काम है अपना..
लंबा चौड़ा है..
एजेंसियों ने चाहा तो जल्दी ही अपना भी कोई बंदा निकल ही जाएगा..
 फास्फोसल्फल्ला..
😭

भविष्य के गणित के मशहूर होने वाले शिक्षक..
ये आर्मी वाले गणित समझते ही नहीं..
Radicals को Rationalise करने की बजाय Neutralise कर देते हैं..🤪🤪

जयहिन्द ।

अक्षिणी