शुक्रवार, 8 मई 2020

लगंतुक-बुझंतुक पुराण ..

आज उन की बात करते हैं जिनका योगदान हमारी सभ्यता को घटना प्रधान बनाने में प्रशंसनीय है..
यदि उनके अनुगामी न होते तो मनुष्य जीवन
अत्यधिक नीरस होता.
लगाई-बुझाई कला के पारंगतों को नारद जयंती की शुभकामनाएं..
यह एक ऐसी महत्वपूर्ण कला है जिसे अब तक इसका उपयुक्त स्थान नहीं मिला है..
चिर काल से चली आ रही इस परंपरा की आकस्मिकता के चलते ही जीवन नूतन बना रहता है..
आइए आज हम और आप मिल कर 64 कलाओं में सम्मिलित न कर इसके साथ किए अन्याय का अपराध बोध थोड़ा कम करें.. 
प्राचीनकाल की मंथराओं और शकुनियों से लेकर वर्तमान युग के सभी संजयों तक इनकी बड़ी ही समृद्ध परंपरा रही है..ये इतिहास पुरुष हैं जिनकी भूमिका की सराहना और प्रशंसा करने के स्थान पर इन्हें हेय दृष्टि से देखा जाता है..मनुष्य जाति का यह अपराध निंदनीय है..

इतिहास ने ही नहीं भाषा ने भी इनके साथ घोर अन्याय किया है..ऐसा कोई शब्द ही नहीं है जो इनके विस्तृत कार्यपत्रक यानि पोर्टफोलियो का प्रतिनिधित्व कर पाए..इसके उसके नामों से पुकारा जाना मुझे स्वीकार्य नहीं है..लगता है यह धृष्टता मुझ अकिंचन को ही करनी होगी।

चुगलखोर शब्द का सुझाव है किंतु यह इन कर्मठ महानुभावों को हेय दृष्टि से दिखाता है.
मेरा सुझाव है कि इनकी कार्य प्रणाली का ध्यान रखते हुए इन्हें लगंतुक-बुझंतुक कहा जाए.
कोई एक शब्द इनके कौशल का प्रतिनिधित्व  नहीं कर पाएगा.
आप के सुझाव आमंत्रित हैं किंतु अभी के लिए यह ठीक है।

लगंतुक-बुझंतुक वर्ग के व्यक्ति बड़े ही निस्वार्थ कर्तव्यनिष्ठ और परिश्रमी होते हैं।
एक धनुर्धर की तीक्ष्ण दृष्टि,तत्परता व मनोविज्ञान रखते हैं कि कब कौनसा संधान कहां करना है।
आप और मैं इनकी दिव्य दृष्टि की कल्पना भी नहीं कर सकते.मानव मन की इनकी समझ और दूरदर्शिता भी वंदनीय है.


बहुमुखी प्रतिभासंपन्न लगंतुक-बुझंतुक वर्ग
मानवीय संबंधों की क्रिया-प्रतिक्रिया में उत्प्रेरक का कार्य करता है।
अपने अदम्य साहस और अभूतपूर्व रणकौशल के चलते ये लोग स्वयं की रक्षा बखूबी जानते हैं..
घर गाँव शहर जल जाए परंतु इन पर आँच न आए..

ईश्वर भी निश्छल और निस्वार्थ लगंतुकों-बुझंतुकों की सहायता से अपना कार्य साधता है और अपयश मिलता है इन्हें.
यदि मिल्टन का स्वर्ग सर्परूपी शैतान के कारण न खोया होता तो संसार कहां होता?
इसलिए अपने आसपास के लगंतुकों-बुझंतुकों को पहचानें,उनसे दूरी रख उनका सम्मान करें।
नारायण नारायण।
🙏

अक्षिणी 

5 टिप्‍पणियां:

  1. निःस्वार्थी लगंतुकों-बुझंतुकों की हर देश-काल में समाज में अपनी प्रमुख भूमिका रही है किन्तु दुर्भाग्य यह रहा है कि इनके पारखी बिरले ही हुए हैं। नारायण नारायण। ��

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  2. लगंतुक-बुझंतुक! बहुत अच्छे। आपकी हिंदी की प्रशंसक हूं मैम। आप नए नए शब्द लाते हो।

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