शिकंजी उदयपुरी..
मंगलवार, 12 मई 2020
चाह..
नहीं..
नहीं कोई चाह बसंत तेरे वैभव की
तेरे कुसुमित सुमन सौरभ की
बस चाह तपित बनतरू सौष्ठव की
जो साध सका हो मुक्ति निर्मोह की..
🙏
अक्षिणी
उमा आर्या की मूल कविता का हिन्दी अनुवाद।
Don’t bring me the splendour of spring
It’s glory is short lived!
Give me the austere trees
Composed in renunciation..
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