चलो राष्ट्र के विकास को आग लगाएं,
अर्थहीन मुद्दों को तूल दे मसला बनाएं..
चलो प्रगति के पहिए को तीली लगाएं,
मजदूरों के नाम फिर कोई दुकान लगाएं..
चलो प्रशासन की मुश्किलें बढ़ाएं,
देश की बनती को बिगाड़ आएं..
यहाँ वहाँ जहाँ तहाँ आग लगाए,
अर्थतंत्र की अर्थी को कांधा दे आएं..
चलो आज हम ये पुण्य कर आएं,
कामगारों को नये झंडे पकड़ाएं..
समृद्धि-रथ कहीं दौड़ ही न जाए,
इसके घोड़ों की नाक नकेल लगाएं..
तरक्की की राह कहीं खुल ही न जाए,
राष्ट्रदेव को मंजिल कहीं मिल ही न जाए..
निर्माण के स्वर समूल राख कर आएं,
चलो आज फिर नया कोई पलीता लगाएं..
अक्षिणी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें