बुधवार, 27 फ़रवरी 2019

मरणासन्न..

एक बार फिर
खुली बाहें
अधरों पर मुस्कान लिए
आलिंगन को आतुर
राहों में पलकें बिछाए
स्वागत को पुष्पहार लिए
आत्ममोहित रूपगर्विता
निर्लज्ज खड़ी है
देशद्रोहियों के लिए
आरती का थाल लिए
येन केन प्रकारेण
सत्ता सिद्धि को लालायित
साँझ की वेला में
मरणासन्न कांग्रेस ।

अक्षिणी

मैं..

अच्छा दिखना मेरी खुशी है..
इसलिए बनती सँवरती हूँ..
अच्छा पहनती हूँ..
अच्छा कहती सुनती हूँ..
इक्कीसवीं सदी है..
लोग अगर सोच न बदलें
तो वो उनकी समस्या है..
मेरी नहीं..
आज की नारी हूँ..
अपनी शर्तों पर जीती हूँ..

अक्षिणी

सोमवार, 18 फ़रवरी 2019

है आँख नम..

है आँख नम
और खोने का गम
 हैं शब्द कम
और मौन स्तब्ध
बस शोक में तुम
फ़कत रोना नहीं
और जोश में
होश खोना नहीं..
बह गया जो रक्त
वो याद रखना..
छोड़ना नहीं ..
चीर बैरियों की
लाश रखना
भूलना नहीं
इस शहादत की लाज रखना..
है आँख नम
और शब्द कम..

#नमन

अक्षिणी

वीर बण्यो रणबीर..


ऊँचे कद का बाँकुरा,
छळकी माँ री पीर..
छोटो हिवड़ो ना कराँ,
वीर बण्यो रणवीर..

अक्षिणी

अनजान बन जा..

दूर कोई रो रहा है
धैर्य अपना खो रहा है
हिचकियों के साथ
अंतिम साँस कोई ले रहा है
शून्य से आवाज़ आई
मोम से पाषाण बन जा
जान कर अनजान बन जा
मगर कब तक?
है जरूरी कि आज तू संगीन हो
संधान बन जा
वज्र हो अग्नि बाण बन जा
सब्र तज
मौत की मशाल बन जा.
रुद्र सम
फिर शत्रुओं का काल बन जा.

अक्षिणी



#नमन
जाने कितने लाल ये लील गया कश्मीर,
पाण चढ़ाओ बाण को,जीत लो कश्मीर..

शांति..

आत्मसम्मान न हो तो कोई क्रान्ति नहीं होती,
मरघट की शान्ति कभी शान्ति नहीं होती..

घिरे हुए सिंह का आर्तनाद सुन काँपते हैं प्राण मित्र,
ठहरो जरा, होने को है आतताइयों का त्राण शीघ्र ..

अक्षिणी

परिवर्तन..

परिवर्तन एक शाश्वत सत्य है..
जो इसे स्वीकार नहीं करते ,
इसके अनुसार नहीं ढलते,
शनै: शनै: लुप्त हो जाते हैं..
अपना अस्तित्व खो देते हैं..
परिवर्तन ही प्रगति है,
जो बदलते नहीं..
जड़ हो जाते हैं..
ठहरे पानी की सी,
सड़ांध मारने लगते हैं..

राम तुम्हें फिर आना होगा..

हे राम तुम्हें फिर आना होगा,
नव संकल्प उठाना होगा..
यह कलयुग भी दायित्व तुम्हारा है,
इसको भी पार लगाना होगा..
देखो कितने रावण उग आए हैं,
दानव के वंशज मानव बन आए हैं..
नई सीता को अपनाना होगा,
हे राम तुम्हें फिर आना होगा..
देखो कितनी आँखें सूनी हैं
कैकेयी की मंथरा से संधि है
कौशल्या को धीर बँधाना होगा..
हे राम तुम्हें फिर आना होगा..
कितने केवट व्याकुल हैं..
कितनी प्रतीक्षाएँ पत्थर है?
सबका भार उठाना होगा
हे राम तुम्हें फिर आना होगा..

~अक्षिणी

रविवार, 10 फ़रवरी 2019

जो अभावों में पले..

जो अभावों में पले और,
चाँद को माँगा किए..
आँधियों में जो खिले और
धूल में महका किए..

जो धूप को तरसा किए,
और छाँव को चाहा किए..
धुर अँधेरों से लड़े जो,
इक दीप हाथों में लिए..

वक्त की सख़्ती ने देखो,
स्वप्न मंजिल के जगाए..
डूबती कश्ती ने जिनको,
ख़्वाब साहिल के सजाए..

छूटते यूँ बेबसी में,
हो गए सपने पराए..
लूटते यूँ बेकसी में ,
दर्द के अपने ये साए..

जो धूप को तरसा किए,
और छाँव को चाहा किए..

ढूँढते जो पत्थरों में,
जीत के आखर सुनहले..
गूँजते कातर स्वरों में,
धूल के पल्लव नवेले..

जो धूप को तरसा किए,
और छाँव को चाहा किए..

टूटती उम्मीद को अपनी
अब वो दें सहारे..
रूठती तकदीर को अपनी
अब वो ख़ुद सँवारें..

जो धूप को तरसा किए,
और छाँव को चाहा किए..

अक्षिणी

रविवार, 3 फ़रवरी 2019

वक्त यूँ ..

जो वक्त यूँ गुज़र गया तो क्या रह जाएगा,
सिलसिला हो दरगुज़र,हादसा रह जाएगा..?