दूर कोई रो रहा है
धैर्य अपना खो रहा है
हिचकियों के साथ
अंतिम साँस कोई ले रहा है
शून्य से आवाज़ आई
मोम से पाषाण बन जा
जान कर अनजान बन जा
मगर कब तक?
है जरूरी कि आज तू संगीन हो
संधान बन जा
वज्र हो अग्नि बाण बन जा
सब्र तज
मौत की मशाल बन जा.
रुद्र सम
फिर शत्रुओं का काल बन जा.
अक्षिणी
#नमन
धैर्य अपना खो रहा है
हिचकियों के साथ
अंतिम साँस कोई ले रहा है
शून्य से आवाज़ आई
मोम से पाषाण बन जा
जान कर अनजान बन जा
मगर कब तक?
है जरूरी कि आज तू संगीन हो
संधान बन जा
वज्र हो अग्नि बाण बन जा
सब्र तज
मौत की मशाल बन जा.
रुद्र सम
फिर शत्रुओं का काल बन जा.
अक्षिणी
#नमन
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें