शुक्रवार, 26 जुलाई 2019

बढ़ी चलो..

बढ़ी चलो,बढ़ी चलो
पहाड़ सी बढ़ी चलो

यूं बढ़ो कि उम्र हो,
फेल सारे यत्न हो
घटो नहीं छँटो नहीं
यूँ डटो कि सत्य हो,
झूठ सी बढ़ी चलो

अमीर हो गरीब हो,
भेद ना करो कभी
संतरी या के मंत्री हो,
वायु सी बढ़ी चलो

दौड़ से डरो न तुम,
भार से भरी रहो
बढ़ी चलो बढ़ी चलो
ओ तोंद तुम बढ़ी चलो

अक्षिणी

किश्तों के रिश्ते..

किसी के हिस्से में
रिश्ते आते हैं,
किसी के हिस्से में
 किस्से !!
 किसी के हिस्से में
हिस्से आते हैं,
किसी के हिस्से में
किश्तें !!


अक्षिणी

पहली बारिश

आज टिन पर
रिमझिम की थाप पड़ी है..
 इस सावन की
 पहली मल्हार छिड़ी है..
 नाच उठी हैं छम छम
पायल बूँदों की..
झूम रहे हैं घन घन
बादल बरखा के..
 आज पहली बारिश है..

अक्षिणी..

कमज़र्फ हम..

हर शाम कटघरे में पाते हैं खुद़ को..
उठाया करते हैं सवाल,
रुबरु ख़ुद के ख़ुद पर..
 मुद्दई भी हम,
 मुंसिफ भी हम..
हैं पेशकार भी,
और जल्लाद भी..
कर दिया करते हैं,
 सर कलम रोज़..
 और सुबह फिर
 उठ खड़े होते हैं कमज़र्फ..
एक नई , फौज़दारी के लिए..

अक्षिणी

अपनी धुन में..

हकीकतों से जूझता है रोज वो..
बस ख्वाबों ख़्यालों में जीता है..
सच से भागता नहीं है,
चंद लम्हे चुराता है..
जीता है चंद मुस्कानें उम्मीद की..
शब्दों का चितेरा है वो,
कविताओं में जीता है..
बेखबर दुनिया जहान से,
अपनी धुन में मस्त मगन..

अक्षिणी