गुरुवार, 21 मई 2020

पेट की बात..

पापी है तो क्या हुआ पेट तो आपका अपना है।
इसका खयाल रखें. इसे आराम दें।

प्रतिदिन नियमित रूप से पाँच-छ बार पूरा भरें और भरते ही लेट जाएं।
ऊर्ध्वाधर अवस्था में रख इस पर अत्याचार कदापि न करें।

महीने भर बाद इसके विकास की समीक्षा करें और आवश्यकता हो तो खुराक बढ़ाएं। 
एकरसता से कोई भी ऊब सकता है।
विविधता में ही जीवन का आनंद निहित है।
पेट भी यही चाहता है। 
प्रतिदिन नाना प्रकार के व्यंजनों से उदराभिषेक करें।
इसे तनिक भी बोरियत महसूस न होने दें।
इसका खयाल रखें।
ये आपकी शारीरिक समृद्धि में वृद्धि करेगा क्योंकि यह आपकी आर्थिक संपन्नता का प्रतीक है।

यूँ भी कोरोना की सबसे बड़ी मार इसी पर पड़ी है..
पान और पानपराग दोनों के स्वाद से वंचित है बेचारा..
कहाँ "संडे से संडे" पूरे सप्ताह समोसे कचोड़ी  खाता था आज रायते की बूँदी को तरस गया है।
जलेबी इमरती के दोने समान गति से चाटता था.. 
संभवतया अब देखने को मिलें..

तीन तरह के गोलगप्पों में नौ तरह के पानी से चटखारे लिया करता था.
उदर का सारा तंत्र ही गड़बड़ा गया है,बेचारे के ए-कोली से जेड-कोली तक के बैक्टीरिया तड़प रहे हैं.
सुनिए उनकी कातर पुकार और मौन आर्तनाद।
रोज खिलाएं कुछ चटपटा और मजबूत करें विश्वास सहअस्तित्व में।
साथ दें अपने उदर का।

आज जैव विविधता दिवस है..कुछ पुण्य कमाएं..
अपने पेट के सूक्ष्म जीवों को साठ भोग खिलाएं..
(56 का प्रयोग वर्जित है क्योंकि उसे सुनते ही पिद्दियों को अतिसार हो जाता है और हम चिकित्सालयों पर भार नहीं बढ़ाना चाहते..)

उदर समृद्धि के अन्य उपायों के लिए अनुसंधान करें और अपने बहुमूल्य सुझाव बाँटें।(कहना पड़ता है,परंपरा है)
समझ तो गए होंगे आप!
निकट भविष्य में उदरामृत का ठेला लगाने की योजना है..
प्रधानमंत्री लघु उद्योग प्रोत्साहन के अंतर्गत ऋण स्वीकृत हो जाए तो..

याद रखिए पेट है तो हम हैं..
पेट से ही अपना दम खम है..
प्रगति और वृद्धि मनुष्य का जन्मसिद्ध अधिकार है.
शरीर की उर्ध्व वृद्धि रूक जाने के बाद क्षैतिजक विकास करें..
आप सभी को सपेट शुभकामनाएं।

अक्षिणी 

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