इंकलाब वही लाते हैं जो अकेले चने होते हैं.. भीड़ तो चनों के ढेर सी भाड़ में भुन जाती है.. इसलिए,सुलगते रहो,
अकेले हो तो क्या..?
बुझने न दो इस आग को, भाड़ क्या.. हम पहाड़ चीर दें..
~अक्षिणी..
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