कड़क हो या कड़वी,बिस्तर में मिल जाय ।
चाय वही अच्छी जो कोई दूजा देय बनाय ।।
हीरा मोती सोना चांदी,कुछ न मुझको भरमाए ।
एक अदद चाय मिले,मुखड़ा खिलखिल जाए।।
पीस के लौंग इलायची,अदरक लई कुटाय ।
पीण वारो आन मिले, चाय देऊं चढ़ाय।।
साथी सगळा हामळ भरे, बैठा नाड़ हलाय ।
कोई न छोड़े बैठको, चाय किंकर बण पाय ।।
चाय बणावो सब कहे, दूध न लावै कोय ।
ब्लैक टी के नाम पर, भृकुटि तिरछी होय ।।
ग्रीन टी के नाम को , खूब मचावै शोर ।
घास-फूस ने चाब के, भैंस ना पतली होय।।
अदरक इलायची डार के,चाय लई बनाय।
फिर मोबाइल को टापते, फ़्रिज में दई धराय।।
यों सूरज के ताप सों,चाय रही घबराय।
गरम चाय तजि सब,अपनाए ठंडी चाय।।
यो तुम मोसे ना कहो, कि चाय दियो भुलाय,
चाय बिना के जीवणो,जनम अकारथ जाय..
अक्षिणी
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