वाह री ममता बिन ममता की,
जरा न सुनती क्यूँ जनता की..
डाक्टर से ये खार है खाए,
गुंडों को ये खूब बचाए..
भारत इसको जरा न भाए,
रोहिंग्यों को गले लगाए..
ये ना बोले बोली समता की,
इसे लहर लगी बस सत्ता की..
लगता है अब नाश है आया,
बुद्धि विवेक से हाथ छुड़ाया..
अक्षिणी
जरा न सुनती क्यूँ जनता की..
डाक्टर से ये खार है खाए,
गुंडों को ये खूब बचाए..
भारत इसको जरा न भाए,
रोहिंग्यों को गले लगाए..
ये ना बोले बोली समता की,
इसे लहर लगी बस सत्ता की..
लगता है अब नाश है आया,
बुद्धि विवेक से हाथ छुड़ाया..
अक्षिणी
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