शुक्रवार, 14 जून 2019

आज भी..

हम आज भी आहें भरते हैं,
उस चाँद की चाहें करते हैं..
परियों के सपन में जीते हैं,
तारों की चाहत में मरते हैं..
हाँ आज भी मेंढक
राजकुँवर बन जाते हैं..
हाँ आज भी हमको,
जादुई सपने भाते हैं..

अक्षिणी

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