शनिवार, 22 जून 2019

एकाकी..

प्रेम में पराजित हुई नारी
त्याग देती है खुशियाँ सारी
बदल जाती है नागफनी में
ओढ़ लेती है
विषैले काँटों का अभेद्य आवरण..

खो देती है वाणी से कोमलता नारी सुलभ
जीती है भीतर बाहर
बस एकाकी बन
निस्पृह निर्भेद्य सदैव
नर मरीचिका से दूर ।

अक्षिणी

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