आज नहीं तो कल मानेंगें
मगर तब तक हम
सच को झुठलाएंगे
जब तक ना हम
लतियाए जाऐंगे
धकियाए जाऐंगें
हम उनको गले लगाऐंगे
सच को नकारेंगे
स्वयं को छलते जाऐंगे
जब तक ना मारे जाऐंगे
उदारता की झोंक में
मुँह की खाएंगे
अपने ही घर से खदेड़े जाऐंगे
निरपेक्ष रहेंगे
और नपुंसक बन जाएंगे.
अक्षिणी
मगर तब तक हम
सच को झुठलाएंगे
जब तक ना हम
लतियाए जाऐंगे
धकियाए जाऐंगें
हम उनको गले लगाऐंगे
सच को नकारेंगे
स्वयं को छलते जाऐंगे
जब तक ना मारे जाऐंगे
उदारता की झोंक में
मुँह की खाएंगे
अपने ही घर से खदेड़े जाऐंगे
निरपेक्ष रहेंगे
और नपुंसक बन जाएंगे.
अक्षिणी
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