हाँ मुझे भी मुझ सा ही रहने दो
न तुम बदलो न हम
अपने मन की करने दो
मगर अर्थ क्या जो
विलग किनारों  से बहते आएं
साथ हो कर भी सदा
अपने दायरों में जीते आएं
नेह का दरिया
हमें छू कर गुजर जाए
स्नेह का सोता कभी 
समंदर न बनने पाए
पर हाँ 
तुम तुम रहो मैं मैं 
कभी हम न होने पाएं..
अक्षिणी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें