बुधवार, 16 अक्टूबर 2019

जी..

न ढूँढ अक्स किसी और के,
खुद आईना बन के जी..
यूँ नक़्श मंज़िलों के भूल के,
तू रास्ता बन के जी..

अक्षिणी 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें