मंगलवार, 31 दिसंबर 2019
नया साल बेमिसाल..
सोमवार, 30 दिसंबर 2019
बैरी कोहरा..
बैरी कोहरा धूप छुपाए, छुड़वाए कौन?
धरती काँपे धुुआँ उठाए, बहलाए कौन?
सूरज मांगे आज फिरौती, चुकाए कौन?
एक अलाव पे आस टिके, जलाए कौन?
पारा हमसे रूठा बैठा, मनाए कौन?
निस दिन देखो गिरता जाए, उठाए कौन?
बीते बरस को ठेस लगी, समझाए कौन?
नये बरस की आस जगे, रुक पाए कौन?
अक्षिणी
रविवार, 29 दिसंबर 2019
भैया बहना..
शुक्रवार, 27 दिसंबर 2019
बच्चे तो बच्चे हैं ..
सोमवार, 16 दिसंबर 2019
झूठ का बाजार..
रविवार, 15 दिसंबर 2019
विछोह..
वो..
शुक्रवार, 6 दिसंबर 2019
कहानी कहिए..
सोमवार, 2 दिसंबर 2019
हूक..
रविवार, 1 दिसंबर 2019
सयानों से दूरी..
शनिवार, 30 नवंबर 2019
ऐसा जनता का राज रहे..
खबर है कहाँ ..
शुक्रवार, 29 नवंबर 2019
बेटी को..
राज तो..
तुझ तक..
वो लुटती,जलती,मरती रहेगी..
आधुनिक भांड
ठाकरे..
शिव सेना..
लानतें..
बहत्तर साल..
मंगलवार, 19 नवंबर 2019
पुरुष दिन..
सोमवार, 11 नवंबर 2019
चिता के फूल..
शनिवार, 2 नवंबर 2019
सँवारती हूँ उन्हें..
एक या दो बस..
शुक्रवार, 1 नवंबर 2019
क्यूं करनी हैं ..
हम तुम..
बज़ाहिर..
तेरी याद चली आई..
बुधवार, 16 अक्टूबर 2019
जी..
सोमवार, 14 अक्टूबर 2019
मानवर..
हम पूछते हैं
अजन्मे बच्चों का लिंग
और पूछते हैं
दूधमूँहे अबोध का धर्म,
जानना चाहते हैं
शवों की जात
और कहते हैं
स्वयं को मनुष्य
क्यों ..?
अक्षिणी
दायरे..
हाँ मुझे भी मुझ सा ही रहने दो
न तुम बदलो न हम
अपने मन की करने दो
मगर अर्थ क्या जो
विलग किनारों से बहते आएं
साथ हो कर भी सदा
अपने दायरों में जीते आएं
नेह का दरिया
हमें छू कर गुजर जाए
स्नेह का सोता कभी
समंदर न बनने पाए
पर हाँ
तुम तुम रहो मैं मैं
कभी हम न होने पाएं..
अक्षिणी
गुरुवार, 22 अगस्त 2019
झकझक
कभी सेहरां तो कभी गुलशन ज़िंदगी,
मुस्कुरा कर बसर करें..
शुक्रवार, 26 जुलाई 2019
बढ़ी चलो..
बढ़ी चलो,बढ़ी चलो
पहाड़ सी बढ़ी चलो
यूं बढ़ो कि उम्र हो,
फेल सारे यत्न हो
घटो नहीं छँटो नहीं
यूँ डटो कि सत्य हो,
झूठ सी बढ़ी चलो
अमीर हो गरीब हो,
भेद ना करो कभी
संतरी या के मंत्री हो,
वायु सी बढ़ी चलो
दौड़ से डरो न तुम,
भार से भरी रहो
बढ़ी चलो बढ़ी चलो
ओ तोंद तुम बढ़ी चलो
अक्षिणी
किश्तों के रिश्ते..
रिश्ते आते हैं,
किसी के हिस्से में
किस्से !!
किसी के हिस्से में
हिस्से आते हैं,
किसी के हिस्से में
किश्तें !!
अक्षिणी
पहली बारिश
रिमझिम की थाप पड़ी है..
इस सावन की
पहली मल्हार छिड़ी है..
नाच उठी हैं छम छम
पायल बूँदों की..
झूम रहे हैं घन घन
बादल बरखा के..
आज पहली बारिश है..
अक्षिणी..
कमज़र्फ हम..
उठाया करते हैं सवाल,
रुबरु ख़ुद के ख़ुद पर..
मुद्दई भी हम,
मुंसिफ भी हम..
हैं पेशकार भी,
और जल्लाद भी..
कर दिया करते हैं,
सर कलम रोज़..
और सुबह फिर
उठ खड़े होते हैं कमज़र्फ..
एक नई , फौज़दारी के लिए..
अक्षिणी
अपनी धुन में..
बस ख्वाबों ख़्यालों में जीता है..
सच से भागता नहीं है,
चंद लम्हे चुराता है..
जीता है चंद मुस्कानें उम्मीद की..
शब्दों का चितेरा है वो,
कविताओं में जीता है..
बेखबर दुनिया जहान से,
अपनी धुन में मस्त मगन..
अक्षिणी
शनिवार, 22 जून 2019
एकाकी..
त्याग देती है खुशियाँ सारी
बदल जाती है नागफनी में
ओढ़ लेती है
विषैले काँटों का अभेद्य आवरण..
खो देती है वाणी से कोमलता नारी सुलभ
जीती है भीतर बाहर
बस एकाकी बन
निस्पृह निर्भेद्य सदैव
नर मरीचिका से दूर ।
अक्षिणी
शुक्रवार, 14 जून 2019
बरसात के टोटके..
बरसात की चाह भी तड़पाती है..
बादल भी तैरते से लुभाते हैं मगर..
ये मौसम है कि बस में नहीं आता..
आदमी बहुत कुछ साध चुका है मगर अभी भी बहुत कुछ उसकी शक्ति के परे है..बरसात भी एक ऐसी ही मृगतृष्णा है..
हमारे देश की बात करें तो वैदिक काल से ही वर्षा को साधने की कोशिश की जाती रही है..कभी यज्ञ से तो कभी हवन पूजन से..तो कहीं राग मेघ मल्हार से वर्षा का आवाहन किया जाता रहा है..जलदेवता वरुण एवं बरसात के देव इन्द्र का आराधन किया जाता रहा है..
बरसात बुलाने के टोनो और टोटकों का तो कहना ही क्या.देश के हर हिस्से में अलग अलग हैं.बंगाल में मेंढकों की बड़ी धूमधाम से शादी कराई जाती है.अभी कल परसों ही ऐसी एक शादी सुर्खियों में थी. तमिलनाडु और केरल में केले के पेड़ों का ब्याह कराया जाता है कि इंद्र देव प्रसन्न हों..
मध्य भारत में बरसात बुलाने के लिए कागज़ की कश्तियाँ जलाशयों में तैरायी जाती हैं..कहीं कहीं कपड़े की गुड़ियाएँ बना कर उनका विवाह भी कराया जाता है..
राजस्थान में कपड़े की गुड़िया को बाँस पर बाँध कर गीत गाते हुए पानी में विसर्जित किया जाता है..किसान सूखे खेतों में सामूहिक गोठ करते हैं और गीत गाकर वर्षा को बुलाते हैं.. देवा मेघ दे, मेघ दे, पाणी दे,गुड़धानी दे..
गुजरात में टिटहरी को ढूँढा जाता है..कहते हैं कि यदि टिटहरी अंडे दे देती है तो बरसात आने वाली है..मोर का बोलना तो खैर बरसात के आने की सुनिश्चित पूर्व सूचना है..
अथिरात्रम् भी ऐसी ही 4000 वर्ष पुरानी याज्ञिक परंपरा है जिससे वातावरण पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है..आधुनिक काल में इसे तीन बार संपन्न किया गया है..1975 में पंजाल, 1990 में कुन्डूर और 2006 में किजाक्कनचेरी में ...पाश्चात्य वैज्ञानिकों एवं शोध संस्थानों के तत्वावधान में ..
लेटिन अमेरिका में किसान खुले आसमान के नीचे खड़े हो कर गैब्रियल एवं पोसैडन को प्रसन्न करने के लिए मंत्रोच्चारण करते हैं वहीं उत्तर अमेरिका के कुछ कबीले आज भी वर्षा नृत्यों का आयोजन करते हैं.चीन में वर्षादेव यिंग लोंग को रिझाने के लिए ड्रैगन डाँस किया जाता है..
थाईलैंड का एक मजेदार किस्सा है एक बार जब बहुत दिनों तक बरसात नहीं आई तो लोगों ने परंपरानुसार एक जीवित बिल्ली को विभिन्न पवित्र स्थानों की यात्रा करवा कर वर्षादेव को मनाने की सोची..किंतु पशु प्रेमी लोगों के डर से उन्होंने असली बिल्लीकी जगह एक खिलौना बिल्ली लेने की सोची.
आखिर में डोरेमोन की शक्ल की खिलौना बिल्ली की मदद से यह कार्य संपन्न किया गया.. बरसात अभी तक नहीं आई है..😆 क्या आप कुछ अलग करते हैं बरसात को बुलाने के लिए..? हमें बताइए..
अक्षिणी
पत्रकार..
कहलाते रहे दरबारी पत्रकार..
आखिर अब याद आया इन्हें दस्तार,
जब सड़क पे आ गए इनके सरकार..
अक्षिणी
भेड़िये हो गए हैं हम..
कि वहशी हो गए हैं हम..
आदमी के नाम पर लानत
गिद्ध भेड़िये हो गए हैं हम..
हाय री मुई चाय..
अब ये मुझे जरा न भाए..
बस अभी ही छोड़े हैं..
पतले होने को दौड़े हैं..
चाय की लत मोहे ऐसी लागी,
छ: कप रोज पीती थी अभागी..
वजन पचहत्तर हुआ तो जागी,
चाय छोड़ अर ग्रीन टी पे आगी..
पेट ढोलकी हुआ है ऐसे,
मास नौवां पूरा हो जैसे..
गर्दन दिखती लठ्ठों जैसी,
बोडी हो गई पठ्ठों जैसी..
दोनों भुजाएं जो हुईं बलशाली,
छोड़ के टी ग्रीन टी अपना ली..
अक्षिणी
आज भी..
उस चाँद की चाहें करते हैं..
परियों के सपन में जीते हैं,
तारों की चाहत में मरते हैं..
हाँ आज भी मेंढक
राजकुँवर बन जाते हैं..
हाँ आज भी हमको,
जादुई सपने भाते हैं..
अक्षिणी
वाह री ममता..
जरा न सुनती क्यूँ जनता की..
डाक्टर से ये खार है खाए,
गुंडों को ये खूब बचाए..
भारत इसको जरा न भाए,
रोहिंग्यों को गले लगाए..
ये ना बोले बोली समता की,
इसे लहर लगी बस सत्ता की..
लगता है अब नाश है आया,
बुद्धि विवेक से हाथ छुड़ाया..
अक्षिणी
बुधवार, 5 जून 2019
शिखर तक..
शीर्ष पर ध्वज फहराना..
नभ का आँचल छू जाना,
फिर लौट नींव को आना..
चट्टानों में राह बनाना,
पर्वत से तुम ऊँचे जाना..
सूरज से भी आँख मिलाना,
फिर लौट नीँव को आना..
तुफानों में शीश उठाना,
सपने सारे सच कर जाना..
धरती माटी नहीं भुलाना,
लौट के फिर तुम नींव को आना..
अक्षिणी
मंगलवार, 21 मई 2019
कीमत..
मगर तब तक हम
सच को झुठलाएंगे
जब तक ना हम
लतियाए जाऐंगे
धकियाए जाऐंगें
हम उनको गले लगाऐंगे
सच को नकारेंगे
स्वयं को छलते जाऐंगे
जब तक ना मारे जाऐंगे
उदारता की झोंक में
मुँह की खाएंगे
अपने ही घर से खदेड़े जाऐंगे
निरपेक्ष रहेंगे
और नपुंसक बन जाएंगे.
अक्षिणी
तेरी खातिर..
नहीं छोड़ पाएंगे
सारी दुनिया तेरी खातिर.
नहीँ भूल पाऐंगे
ये गलियां तेरी खातिर.
नहीं भूल पाएंगे
दुनिया के गम तेरी खातिर.
माँ के हाथ की रोटी
तेरी खातिर.
और वो बापू की झिड़की
तेरी खातिर.
वो बहना के बोल.
टूटी दुछत्ती की खिड़की
तेरी खातिर.
माफ कर देना हमें.
जुटाने है
चंद टुकड़े अभी..
बनानी है चार दीवारें अभी..
छोटे की किताबें बाकी हैं..
छोटी की जुराबें भी फटी हैं..
फिर कुछ माँ के भी सपने हैं..
जो मेरे भी अपने हैं..
इसलिए मेरी दोस्त ..
माफ कर देना मुझे..
भूल जाना मुझे..
व्यर्थ है भागना ..
परछाइयों की ओर..
नियमों को तोड़ अकेले
किसी कोने में छुप
ख़ुद के लिए
चुपचाप हाशियों पे
जीने की खातिर
इसलिए
लौट चलते हैं
अपनी अपनी दुनिया में..
और जीते हैं सब की खातिर..
अक्षिणी
सार्थक
निजहितचिंतन हो गौण जहाँ
मुखरित हो सर्वजन हित
सर्वजन सुख जहाँ सर्वदा
नव का हो निर्माण..
निस्वार्थ रहे जब सोच सदा
सत्यनिष्ठ हो एकनिष्ठ हो
सत्पथ हो संधान जहाँ
नव का हो निर्माण..
निरपेक्ष हो निष्पक्ष सदा साथ
चलें साथ बढ़ें
राष्ट्रहित रहे जो लक्ष्य सदा..
अक्षिणी
गुरुवार, 9 मई 2019
दो कौड़ी
वही गिनते हैंं वही गुनते हैं..
मोतियों के ढेर से हर बार,
वही ईमान की दो कोड़ियाँ चुनते हैं..
अक्षिणी
सोमवार, 6 मई 2019
लौट आओ..
तुम स्त्री हो कर भी
पुरुष से कहीं ज्यादा हो..
हाँ मगर स्त्री तुम
स्त्री रही कहाँ हो..?
पुरुष बनने की चाह में
खो रही हो अपना स्त्रीत्व..
माँ तो आज भी हो मगर
खो चुकी हो मातृत्व का ममत्व..
विवेकशून्य हो
किए जा रही हो अनुकरण
भूल कर अपना नैसर्गिक महत्व..
लौट आओ क्योंकि
व्यर्थ है ये दिशाहीन विचरण..
कब तक खोजती रहोगी
समानता के फेर में
स्वच्छंदता का अवतरण..
श्रेष्ठ हो
सो छोड़ दो पुरुष बनने का
ये आत्मघाती यत्न
अक्षिणी..
बुधवार, 24 अप्रैल 2019
सीख लिया है..
किताब में लिखा दर्द
जब बहने लगे तेरी आँखों से
किताब के पन्नों पर बिखरे काँटे
जब चुभने लगे तेरे पैरों में
किताब की रवानी ज़िंदा हो
थिरकने लगे तेरे मन में
किताब के हर्फ़ जब
घाव बन रिसने लगे तेरे तन से
किताब की बगिया के फूल
जब महकने लगे तेरी साँसों में
अंगार से दहकने वाले अच्छर
मशाल से सुलगने लगे तेरे दिल में
तो समझना
कि तुमने पढ़ना सीख लिया है..
अक्षिणी
शनिवार, 6 अप्रैल 2019
Write in vain..
Some pour their pain
To my utter disdain
Some write in vain
Some write to heal
Some write to peel
Some write to deal
For just the very zeal
Some write to mend
Some write to fend
To mark the beginning
Some write the very end
Some rhyme to treason
Some rise to the season
And some like me write
for no rhyme or reason
That's Poetry my friend
Just lets me go insane
It defines me in chaos
It keeps me of the bane
Akshini
सोमवार, 25 मार्च 2019
वो शादी की तस्वीरें..
वो शादी की तस्वीरें ..
अब पहचानी नहीं लगती,
वो चोरों का राजा तो लगता है..
मैं रूप की रानी नहीं लगती..
कुपोषित सिमटी
कोमल सी जो बैठी है
ये खाती पीती मुटियायी सी
महारानी नहीं लगती..
अनुभव से जो हासिल है,
बालों में चांदी नहीं दिखती..
मेरे बच्चों के बापू की
ये तस्वीर सुहानी नहीं लगती..
देखी सी तो लगती है मगर
अपनी ये कहानी नहीं लगती..
भोली भाली अब भी है मगर
ये लड़की वो दीवानी नहीं लगती..
वो शादी की तसवीरें अब,
पहचानी नहीं लगती..
अक्षिणी..
गुरुवार, 21 मार्च 2019
हँसगुल्ले
बतोड़ो को बतगुल्ले
लतोड़ो को लतगुल्ले
मिठोड़ो को रसगुल्ले मिलेंगे
दूर रहें मुँहफुल्ले सड़गुल्ले
उन्हें मिलेंगे
होली है..
शुक्रवार, 15 मार्च 2019
अज्ञानी अक्षिणी..
अक्षरों के अनुनाद की अनुगूँज तक..
कच्ची पक्की सी हैं मेरी कविताएं..
अभिभूत हूँ अनुकृपा से,
अनादि अनंत की..
मैं अकिंचन प्राणी..
अज्ञानी अक्षिणी ..
बुधवार, 27 फ़रवरी 2019
मरणासन्न..
खुली बाहें
अधरों पर मुस्कान लिए
आलिंगन को आतुर
राहों में पलकें बिछाए
स्वागत को पुष्पहार लिए
आत्ममोहित रूपगर्विता
निर्लज्ज खड़ी है
देशद्रोहियों के लिए
आरती का थाल लिए
येन केन प्रकारेण
सत्ता सिद्धि को लालायित
साँझ की वेला में
मरणासन्न कांग्रेस ।
अक्षिणी
मैं..
इसलिए बनती सँवरती हूँ..
अच्छा पहनती हूँ..
अच्छा कहती सुनती हूँ..
इक्कीसवीं सदी है..
लोग अगर सोच न बदलें
तो वो उनकी समस्या है..
मेरी नहीं..
आज की नारी हूँ..
अपनी शर्तों पर जीती हूँ..
अक्षिणी
सोमवार, 18 फ़रवरी 2019
है आँख नम..
और खोने का गम
हैं शब्द कम
और मौन स्तब्ध
बस शोक में तुम
फ़कत रोना नहीं
और जोश में
होश खोना नहीं..
बह गया जो रक्त
वो याद रखना..
छोड़ना नहीं ..
चीर बैरियों की
लाश रखना
भूलना नहीं
इस शहादत की लाज रखना..
है आँख नम
और शब्द कम..
#नमन
अक्षिणी
वीर बण्यो रणबीर..
ऊँचे कद का बाँकुरा,
छळकी माँ री पीर..
छोटो हिवड़ो ना कराँ,
वीर बण्यो रणवीर..
अक्षिणी
अनजान बन जा..
धैर्य अपना खो रहा है
हिचकियों के साथ
अंतिम साँस कोई ले रहा है
शून्य से आवाज़ आई
मोम से पाषाण बन जा
जान कर अनजान बन जा
मगर कब तक?
है जरूरी कि आज तू संगीन हो
संधान बन जा
वज्र हो अग्नि बाण बन जा
सब्र तज
मौत की मशाल बन जा.
रुद्र सम
फिर शत्रुओं का काल बन जा.
अक्षिणी
#नमन
शांति..
मरघट की शान्ति कभी शान्ति नहीं होती..
घिरे हुए सिंह का आर्तनाद सुन काँपते हैं प्राण मित्र,
ठहरो जरा, होने को है आतताइयों का त्राण शीघ्र ..
अक्षिणी
परिवर्तन..
जो इसे स्वीकार नहीं करते ,
इसके अनुसार नहीं ढलते,
शनै: शनै: लुप्त हो जाते हैं..
अपना अस्तित्व खो देते हैं..
राम तुम्हें फिर आना होगा..
नव संकल्प उठाना होगा..
इसको भी पार लगाना होगा..
दानव के वंशज मानव बन आए हैं..
हे राम तुम्हें फिर आना होगा..
रविवार, 10 फ़रवरी 2019
जो अभावों में पले..
जो अभावों में पले और,
चाँद को माँगा किए..
आँधियों में जो खिले और
धूल में महका किए..
जो धूप को तरसा किए,
और छाँव को चाहा किए..
धुर अँधेरों से लड़े जो,
इक दीप हाथों में लिए..
वक्त की सख़्ती ने देखो,
स्वप्न मंजिल के जगाए..
डूबती कश्ती ने जिनको,
ख़्वाब साहिल के सजाए..
छूटते यूँ बेबसी में,
हो गए सपने पराए..
लूटते यूँ बेकसी में ,
दर्द के अपने ये साए..
जो धूप को तरसा किए,
और छाँव को चाहा किए..
ढूँढते जो पत्थरों में,
जीत के आखर सुनहले..
गूँजते कातर स्वरों में,
धूल के पल्लव नवेले..
जो धूप को तरसा किए,
और छाँव को चाहा किए..
टूटती उम्मीद को अपनी
अब वो दें सहारे..
रूठती तकदीर को अपनी
अब वो ख़ुद सँवारें..
जो धूप को तरसा किए,
और छाँव को चाहा किए..
अक्षिणी