शुक्रवार, 28 दिसंबर 2018

बेचते हैं..

आतंकियों के पैरोकार
कुछ भी करेंगे
कुर्सी के लिए
कभी भी,कहीं भी
किसी भी हद तक
ये गरीब की आह बेचते हैं
ये शहीद की चाह बेचते हैं
मतलबी अय्यार ये
बर्बादी के असलाह बेचते हैं
खानदानी सौदागर हैं
ये पुश्तैनी गद्दार हैं
ताज जो मिले तो ये
वतन को सरे बाजार बेचते हैं

अक्षिणी


*असलाह-हथियार

अक्षिणी

क्यों..

क्यों व्यर्थ चिंतन करना है?
क्यों व्यर्थ मनन करना हैं?

जो कल था वो आज नहीं,
जो आज है वो कल कहाँ..
ये आज की बात कल,
कोई कब कह पाया है..

क्यों वादविवाद में फंसना है?
क्यों प्रत्युत्तर में धँसना है?
जब मौसम हर पल बदलना है,
क्यों बहस मुबाहिसा करना है?

अंतरजाल के इस चहकते,
जंजाल में जाने कैसी माया है.

जाने किस हत्थे के पीछे
किस तिलिस्म की छाया है
प्रकृति है,पुरूष है कोई
महामुनि है या महामाया है.

आज अहम् है जो विषय
कल बासी हो जाना है.
चर्चा परिचर्चा से बस
अपना ज्ञान बढ़ाना है.

फिर क्यों चिंतन करना है
क्यों माथे पर बल भरना है

अक्षिणी

मजदूर

शाम को रेलवे लाईन पर,
कभी ओवर ब्रिज के नीचे
कभी बस अड्डे पर
गाड़ियों के पहियों के बीच
सर टिकाने की जगह तलाशता है
वो मजदूर जो
पाँच सितारा होटलें बनाता है,
हमारे तुम्हारे
आशियाने तराशता है..

अक्षिणी

देखा है..

देखा है चेहरों को रंग बदलते हुए
लहरों को संमदर पे मचलते हुए
देखा है किसी आँख से आँसू ढलकते हुए
किसी साँस को उठते, गिरते सँभलते हुए
देखा है लोगों को जमाने के ढंग में ढलते हुए
खरबूजे के साथ खरबूजे को रंग बदलते हुए
देखा है किसी चेहरे का नूर पिघलते हुए
देखा फिर आज उसे पहलू बदलते हुए

अक्षिणी

गुरुवार, 27 दिसंबर 2018

लिखता कहाँ है..

कवि लिखता कहाँ है?
कवि तो बस कहता है..
जब सहता है तब कहता है
कुछ चुभता है तो कहता है
रस बरसता है तो कहता है
मन तरसता है तो कहता है
अधरों पर हँसी बन रहता है
आँख से आँसू बन बहता है
पेट की आग सा दहकता है
जेठ में फाग सा महकता है
कवि तो बस कहता है..
कवि लिखता कहाँ हैं?

अक्षिणी

सरकार आपकी है..

कामकाजी हैं?
जीना बेकार है
किसान बनिए
या बेरोजगार बनिए
काम कर कर मत दीजिए
ऋण लीजिए
चुकाईए मत
ऐश कीजिए
आखिर आप वोट देते हैं
सरकार आपकी है
राहुल जी चल पड़े हैं
गडकरी की सड़कों पर
पीयूष गोयल की रेल से
दिल्ली पहुँचने को हैं
भाजपा जावडेकर का
ब्रेक ढूँढ रही है
मोदीजी #3T में व्यस्त हैं

अक्षिणी

रविवार, 9 दिसंबर 2018

औरतें..

औरतें सुनती हैं
परिवर्तन की पदचाप
और करती हैं,
आगत का स्वागत
खुली बाहों से.
झिझकती नहीं ज़रा,
जानती हैं कि,
परिवर्तन ही
प्रगति है,
उन्नति है,
समृद्धि है..

अक्षिणी

मंगलवार, 4 दिसंबर 2018

भुलाते कैसे..


कुछ वो कह गए..कुछ ज़माना..
झूठा सही अपना फसाना..
हम भुलाते भी कैसे..?

अक्षिणी

आईना

आईना बन जी रहे हैं इन दिनों,
मन में झांक लिया करते हैं..
आते-जाते गाहे-बगाहे ख़ुद को,
ख़ुद ही आंक लिया करते हैं..

कोलाहल के कोहरे से दूर,
भीतर जी रहे हैं इन दिनों..
इससे उससे मिलते आए,
खुद से मिल रहे हैं इन दिनों..

अक्षिणी

तमाम रात..


कहता रहा चाँद,
तमाम रात अपनी बात..
चाँदनी,
सुनती रही तमाम रात..
खामोश लब,
बोलते रहे तमाम रात..
पूरी अधूरी सी बात,
जागती रही तमाम रात..

अक्षिणी

शुक्रवार, 30 नवंबर 2018

कौन..?

दूर कोई रो रहा है,
धैर्य अपना खो रहा है,
हिचकियों के साथ
घुटती साँस कोई ले रहा है..
कौन हैं पाषाण जो,
तोलते हैं, मोलते हैं,
अंधेरे स्याह कोनों में
टटोलते हैं नन्हीं बालियों को,
कौन हैं जो संज्ञा शून्य हैं..?
कौन हैं वो?
आप , मैं या हम सब..?
कौन हैं ..?
जो लगाते हैं ये मंडियाँ..
कौन हैं..?
जो उठाते हैं ये हुंडिया..
करते हैं व्यापार,
मासूम सपनों का..
सजाते हैं बाज़ार,
नाजुक कलियों का..
कौन हैं..
आप, मैं या हम सब..
कौन हैं..?

उत्सवों में, त्योहारों में,
शादियों में
कनातों के पीछे
दबोचते हैं भेड़िए ..
आदमी के खाल में,
नोंचते हैं कोंचते हैं..
कौन हैं..?
वो नरपिशाच..
कौन हैं..?
वो दरिन्दे..
कौन हैं..?
आप, मैं , ये , वो,
कौन हैं..?
हम में से ही तो कुछ हैं..
या हम सब?

अक्षिणी

मंगलवार, 27 नवंबर 2018

चुनावी चर्चे..

चुनावों का मौसम है..इस चुनावी रेशम का एक सूत्र तो अपना भी बनता है..
तो चलिए बात करते हैं वोटरों की..
हर चुनाव का एक अपरिहार्य अंग होते हैं वोटर..लोकतंत्र में चुनाव ही एक ऐसा समय होता है जब वोटरों को पूछा जाता है, आधार कार्ड और पहचान पत्र की धूल झाड़ी जाती है..

म्युनिसपालिटी से लेकर संसदीय चुनावों तक वोटर का महिमामंडन किया जाता है, उनकी आरतियाँ उतारी जाती हैं, प्रशस्ति पढ़ी जाती है..कुछ दिनों के लिए तारीफों के झाड़ पर चढ़ाया जाता है ताकि जब नीचे पटका जाए तो चोट यादगार रहे.सुबह शाम प्रत्याशियों के समर्थकों की टोली हाल पूछने आती है..

सारे के सारे राजनैतिक दल इन्हें रिझाने में जुटे होते हैं.सही जगह शिकायत हो तो स्वच्छ भारत की कचरा गाड़ी की बजाय स्वयं प्रत्याशी अपनी गाड़ी ले कर आपके घर से कचरा उठाने भी आ जाते हैं.
कल तक जो आपकी ओर देखते नहीं थे, ऐंठ कर निकल जाया करते थे आज पीढ़ियों का रिश्ता निकाल लेते हैं.

आप कहेंगे कि इसमें नया क्या है.वोटरों की ये खुशामद तो बड़े समय से चलती आई है.
जनाब नया ये है कि आज का वोटर बड़ा समझदार है.जिस प्रकार लोगों की जात होती है,वर्ग होते हैं और गोत्र होते हैं ठीक वैसे ही इस वोटर प्रजाति के नाना प्रकार की किस्में होती हैं जो अपनी एक छाप लिए होते हैं.

सबसे मशहूर छाप होती है खानदानी वोटरों की..कुछ भी हो वोट तो उसी पार्टी को देगें चाहे उसका उम्मीदवार चम्पु ही क्यों न हो.ऐसे लोग नवाचार में विश्वास नहीं रखते, बस ठप्पा लगाने की परंपरा निभाते हैं.लकीर पीटते हैं और देश को गर्त में धकेले जाते हैं..

इसके बाद आते हैं क्रांति छाप वोटर..
जो सिर्फ बदलाव चाहते हैं और परिवर्तन के नाम पर किसी भी ऐरे गैरे नत्थुखैरे को चुन लेते हैं और फिर पाँच साल सिर धुनते हैं. दिल्ली से दौलताबाद वाले ऐसे शेखचिल्ली परिवर्तनों के लिए दिल्ली मशहूर है..

अगली किस्म बड़ी रोचक है..ये सामूहिक विवाह की तर्ज पर सामूहिक मतदान करते हैं.वाट्सएप ने ऐसे वोटरों की बड़ी फसल तैयार की है.
फिर आते हैं फेसवोटिए यानि चेहरा देखते हैं और ठप्पा लगाते हैं. प्रोफाइल तक तो पहुँचते ही नहीं..फोटो से ही तय कर लेते हैं..

एक होते हैं डेढ़ श्याणे जो पहले सोचते हैं और फिर वोटते हैं.किसी पार्टी को ज्यादा बहुमत मिलने नहीं देते कि कहीं दिमाग ना चढ़ जाए पर अंत में ये भी दिल्ली वाले ही साबित होते हैं.
एक प्रजाति वो भी होती है जो ट्विटर पर दिनरात हवा बाँधती रहती है और चुनाव के दिन घोड़े बेच कर सोती है..

एक किस्म और होती है जो नेकी कर कुएं में डाल की तर्ज पर वोट करती है और परिणाम की परवाह नहीं करती.
कहती है, "कोऊ नृप होहि हमहूँ का हानि.."
ये सर्व दल समभाव रखती है और चुनाव चिन्ह के आधार पर वोट करती है..साइकिल चले ना चले, हाथ उलटा पड़े पर फूल तो खिलेगा ही..

फिर कुछ वोटरों की बात ही निराली है.सुबह सुबह नहा धोकर सबसे पहले वोट करते हैं और नतीजे की प्रतीक्षा करते हैं कि कुछ तो बदलेगा..ये सोचते हैं, समझते हैं फिर चुनते हैं.संख्या में कम होते हैं मगर लोकतंत्र को ज़िंदा रखते हैं,साड़ी-ताड़ी में बिकते नहीं.
बाड़ी-गाड़ी से बहकते नहीं.

इन्हीं के कारण चुनावों को लोकतंत्र का त्योंहार कहा जाता है.कुछ किस्में और भी हैं जो जाने कहाँ से टपक पड़ती हैं और हर चुनाव में एक नई कच्ची बस्ती खड़ी कर जाती हैं.कहाँ से आती हैं कोई नहीं जानता पर देश के भविष्य की दशा और दिशा दोनों बिगाड़ जाती है.ईश्वर ही बचाए इन आधारहीनों से🙏

अक्षिणी

मंगलवार, 6 नवंबर 2018

आइए दीप जलाएं..

आइए..
दीप जलाएं..
जो तिमिर हरे ,
वो जोत जगाएं..
स्वस्ति की पायल छनकाएं,
लक्ष्मी की झांझर
झनकाएं..
धनधान्य भरें और
मनमालिन्य हरे..
आइए..
दीप जलाएं..
स्नेह के , प्रीत के,
ज्ञान की जीत के,
उजियारे घर ले आएं..
आइए दीप जलाएं..
घर आँगन,भीतर बाहर,
सब नगर डगर,
हर दहलीज सजाएं..
आशा की जोत जगाएं
आइए..
दीप जलाएं..
शुभ हो,मंगल गाएं,
रोशन हो फिर ,
दसों दिशाएं..
दीपावली की
शुभकामनाएं..

अक्षिणी

मंगलवार, 30 अक्टूबर 2018

हाय री मेरी आज की नारी..

हाय री मेरी आज की नारी
तेरी मुश्किल है कितनी भारी
आधी रात को एक अदद
सिगरेट ढूँढती ये बेचारी
ऊपर नीचे इधर ऊधर
देखो फिरती मारी मारी
यहाँ वहाँ हाथ फैलाए
देती जाती अंग्रेजी गाली
अहो दुर्भाग्य!
बस एक कश की खातिर
अधनंगी होने की लाचारी
लो फिर मी टू मी टू
करने की है तैयारी..

अक्षिणी

शनिवार, 27 अक्टूबर 2018

खूबसूरती..

खूबसूरती तो आशिक की निगाहें बयां करती है,
है गर इश्क तो बला भी हूर लगा करती है..

अक्षिणी

गुरुवार, 18 अक्टूबर 2018

जख़्म अपने हैं..

आँख भर आए तो पलकों में छुपाए रखिए..
हँसते रहिए, खुशियों का भरम बनाए रखिए..

आह भर आए तो होठों में दबाए रखिए,
कुछ ना कहिए,जमाने को लजाए रखिए..

दिल की कह देंगी,निगाहों को झुकाए रखिए,
रात मुश्किल है, सुबह को बुलाए रखिए..

हैं जो ज़िंदा तो साँसों में तराने रखिए,
राह मिल जाएगी, ठोकर पे जमाने रखिए..

दर्द दिल के हैं , पत्थर के सहारे रखिए,
जख़्म अपने हैं , मरहम न पराए रखिए..

अक्षिणी

बुधवार, 17 अक्टूबर 2018

सादगी..

मायूस न हो ऐ दिल,बड़ी मुद्दत से है जारी..
दादागिरी से सादागिरी की ये जंग भारी..

रविवार, 14 अक्टूबर 2018

जागो और भागो..

जागो और भागो,
सो कर किसने कुछ पाया ..
धूप को जिसने अपनाया,
साथ उसी के चलती छाया ..

शमशीर उठाओ,
कर्मयुद्ध का घोष है आया..
जयगीत उसी के बनते आए,
वक्त से जो लड़ता आया ..

अक्षिणी

गुमशुदा..

मुझे खुद मेरी खबर नहीं,
इस कदर गुमशुदा हूँ मैं..
सुना है कुछ लोग कहते हैं,
इन दिनों लापता हूँ मैं...

अक्षिणी

आज की नारी..

वाह री मेरी आज की नारी,
तेरी मुश्किल है सच में भारी..
अबला से सबला के हवन की
तू जलती छलती इक चिंगारी

छूने थे तुझे नये आसमान,
भरनी थी जब तुझे उड़ान..
सीढ़ियों पे रख कदम,
चढ़ती गई सब सोपान..

वाह री मेरी आज की नारी,
तेरी मुश्किल है सच में भारी..

बुलंदी की चाह में किस कदर,
मजबूर थी तब वक्त की मारी..
बिछती रही हर दर हर चौखट,
मंजूर थी तुझे वो शर्ते सारी..

वाह री मेरी आज की नारी,
तेरी मुश्किल है सच में भारी..

उम्र बिताई बन अबला बेचारी,
जीती आई जैसे तैसे मारी मारी..
जो दिखी राह तो मुँह खोला है,
बदला चुन चुन लेगी बारी बारी

वाह री मेरी आज की नारी,
तेरी मुश्किल सच है भारी..

अक्षिणी

सोमवार, 8 अक्टूबर 2018

कितने..

कितने रिश्ते हैं
जिनकी बाकी अभी किश्तें हैं..

जाने कितने कतरे हैं कि ,
आँखों में आँसू के खतरे हैं ..

जाने कितनी कसमें हैं
झूठी जिनकी रस्में हैं..

अक्षिणी

सोमवार, 1 अक्टूबर 2018

चलो जीत लाएं जो खुशी कम है,
जरा सा हँसाए जो आँख नम है..
चलो ढूंढ लाएं जो हँसी गुम है,
धूप छाँव तो हर दर हर पल हर दम है..

अक्षिणी

शनिवार, 29 सितंबर 2018

कुछ लोग..

कुछ यूँ ही खाने का दिखावा
किया करते हैं कुछ लोग..
खाने को होता कुछ नहीं..
पानी पर जिया करते हैं कुछ लोग..

कहने को बेमुरव्वत से हैं,
नारों संग चिल्लाते नहीं कुछ लोग..
वतन पे आए तो
जां से गुजर जाया करते हैं कुछ लोग..

सोचते नहीं जरा,
बेबाक जिया करते हैं कुछ लोग..
अपनी पे जो आए तो
बेख़ौफ सच कह जाया करते हैं कुछ लोग..

पहचानते नहीं ज़रा,
नज़र चुरा निकल जाते हैं कुछ लोग..
नज़र में जो आएं जरा
नज़रों से उतर जाया करते हैं कुछ लोग..

अक्षिणी

शनिवार, 22 सितंबर 2018

वज़ूद..

साथ वज़ूद हो न हो उसका
कुरबत ज़रूरी है ऐ ज़िंदगी,
कहने को दिखता नहीं ख़ुदाया,
साँस साधे है अहसास-ए-बंदगी..

अक्षिणी

फनाकर गया..

कशमकश,वो आब-ए-उम्र या के
परस्तिश गज़ब फना कर गया
अज़ब जुस्तज़ू यूँ अता कर गया,
गो ज़िंदगी वो सज़ा कर गया..

अक्षिणी

शुक्रवार, 21 सितंबर 2018

फिर किसी रोज..

चार कतरे रोज
ज़िंदगी के,
चुराती हूँ..
लम्हा लम्हा ,
परत दर परत,
सँभालती हूँ
छूती हूँ ,

आँखों की कोरों से
सहलाती हूँ
काँपते पोरों सें..
कुछ देर और..

सहेज कर रख देती हूँ
यादों कों..
फिर किसी रोज
जीने के लिए..

अक्षिणी

रविवार, 16 सितंबर 2018

जन्मदिन

जन्मदिन की अनेकानेक शुभकामनाएं प्रधानमंत्री महोदय
हमारा सौभाग्य है कि आप जैसे कर्मठ,समर्पित और निष्ठावान व्यक्ति हमारे प्रधानमंत्री हैं
आपके द्वारा किए गए जनोपयोगी कार्यों  के लिए आभार
कामना है कि आप स्वस्थ एवं दीर्घायु रहें और राष्ट्र का नेतृत्व निर्बाध रूप से करें
@narendramodi

राष्ट्र आपके नेतृत्व में उत्तरोत्तर प्रगति की ओर अग्रसर हो
पिछड़ों का कल्याण हो और अगड़ों के साथ न्याय हो
सभी धर्मों का सम्मान हो,अल्पसंख्यकों को अधिकार मिले और बहुसंख्यकों के हितों की सुरक्षा हो
बेटियाँ पढ़ें,बढ़े, बेटों को समुचित सम्मान मिले
जन्मदिन की शुभकामनाएं
@narendramodi

राष्ट्र की सैन्य बल का मनोबल बना रहे
सेनाएं सुसज्जित और सन्नद्ध रहें
राजकीय कोष और समृद्ध हो
देशवासियों की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हो
बेघर को घर मिले,बेकार को काम
आतताइयों का नाश हो
माल्या, नीरव पैसा लौटाएं
पेट्रोल और डीजल के दामों पर लगाम लगे
जन्मदिन की शुभकामनाएं
@narendramodi

उत्तर से दक्षिण,पूरब से पश्चिम
देश एक रहे..
दूसरे भी छोटे मोटे,
बहुत काम हैं पर पहले
राम जी का धाम बने
कश्मीर का काम बनें
2019 के चुनावों में,
धुआँधार विजय मिले
जयश्रीराम..

जन्मदिन की शुभकामनाएं..
@narendramodi
अक्षिणी

शुक्रवार, 14 सितंबर 2018

हैप्पी हिन्दी डे..

हमारी हिन्दी..
सर्वरूप अलंकार लिए
चंद्रबिंदु अनुस्वार लिए
स्वर व्यंजन की झंकार लिए
सब रूपक रूप श्रृंगार किए
साहित्य सृजन का भार लिए
आँचल में रचना संसार लिए
पद सम्मान को तृषित
अपने अधिकार से वंचित
एक रूपवती भिखारिन सी
एक भटकी बंजारिन सी
हमारी ओर देख रही है
और कह रही है
"हैप्पी हिन्दी डे"

अक्षिणी

गुरुवार, 13 सितंबर 2018

तन्हाई


मेरे आईने में ज़िंदा
बस इक तन्हाई है..
तस्वीर नहीं कोई,
तहरीर नहीं कोई,
बस धुंध सी छाई है..
शबनम सी शीशों में,
एक आह उभर आई है..

अक्षिणी

मेरा होना..

कहने को ऐ ज़िंदगी ,
तू बड़ी हसीन है..
वाकई मेरे वज़ूद का,
ज़ुर्म बड़ा संगीन है..
परखती है मुझे,
हर निगाह हरदम..
फहरा देती है मेरी,
कमज़र्फी का परचम..
होने को तो मेरा होना
माने नहीं रखता..
हाँ मेरे होने पे,
सवाल लाज़मी है..
और ज़िंदा रहने पे,
बवाल लाज़मी है..

अक्षिणी

काले धंधे


माना कि काले इनके धंधे हैं,
मगर कानून भी तो अंधे है ..
न्याय के रक्षा को जो बैठे,
वो भी तो इनके ही बंदे हैं..

अक्षिणी

गुरुवार, 6 सितंबर 2018

फिर नई इक मशाल जला..

ले विश्वास तू साथ सदा,
फिर नई इक मशाल जला..

जो चल पड़े तो जीत है,
जो रुक गए तो हार है..
जो बढ़ चले वो वीर हैं..
जो चुक गए, बेकार हैं..

रणछोड़ नहीं,रणजीत है तू,
जंजीर छुड़ा,शमशीर उठा..
फिर नई इक मशाल जला..

जो कर्म तेरे साथ है,
तो साथ तेरे नाथ है..
सो कर्म को प्रधान कर,
लक्ष्य को प्रयाण कर..

फिर नई ललकार जगा,
फिर नया यलगार उठा..
फिर नई इक मशाल जला..

अक्षिणी

रविवार, 2 सितंबर 2018

कोई रोको ना..

कोई रोको ना
नमकहरामों को
इन्हें गाने दो गीत गद्दारों के
ये फलते आए नमकहरामी से
कोई रोको ना
अरुंधती राॅय को
ये कहती आई बात हत्यारों की
कोई रोको ना
इन खबरचियों को
ये लिखते आए गीत नक्सल के
ये बिकते आए हाथ दुश्मन के
पालो
पोसो
आस्तीन के साँपों को
और कटने दो इसे
देश तो गरीब की गाय है.
अक्षिणी

कृष्ण भगवन् तुम..

नंदनंदन तुम,नित्य वंदन तुम
सौम्य वदनम् तुम,शुभ्र चंदन तुम..

सर्व भूपम् तुम ,विश्व रूपम् तुम 

सत्य दर्पण तुम, योग दर्शन तुम..

गोपगोविंदम्, मुग्ध नर्तक तुम
कष्ट मोचन ,मन के मोहन तुम..

सौम्य सृजनम्,भक्त वत्सल तुम
दिव्य दर्शन तुम,दृश्य रचनम् तुम..

दीनहीन हम,ज्ञानहीन हम
सबके अर्चन् तुम ,कृष्ण भगवन् तुम..


अक्षिणी

सोमवार, 13 अगस्त 2018

क्यूं हैं..

क्या बताएं के परेशां क्यूं हैं..
हम तो हैरां हैं कि ज़िंदा क्यूं हैं..

अक्षिणी

रविवार, 12 अगस्त 2018

नया भारत..

नई उमंगें,नई तरंगे,आह्वान नये हैं
नव भारत के अभिमान नये हैं..

गुंजित हो सब जल थल अंबर,
आल्हादित हो जन गण का मन ..

निजता का अधिकार नया हो
नारी का सम्मान नया हो..

आरक्षण का अवसान तुरत हो,
सब रक्षण से उत्थान नया हो..

नई ऊर्जा है, नई उर्वा है
नव सृजन के विज्ञान नये हो

नये भारत के निर्माण नये हो,
अब प्रगति के प्रतिमान नये हो..

72वें स्वतंत्रता दिवस की
हार्दिक शुभकामनाएं..

अक्षिणी

शनिवार, 11 अगस्त 2018

एकाकी छोर..


आजाद पतंग सा एकाकी ,
छितरे से तागे संग गूँधा मन  ..
और इस धागे के तमाम सिरे
तुम तक पहुंचते हैं गाहे बगाहे
और उलझा जाते हैं मेरी
सोच की गुत्थियों को कुछ और..
बना जाते हैं नये सिलसिले,
खोल जाते हैं कोई नया छोर..
तुम सो जाओ, तुम खो जाओ..
इन पर चलता नहीं कोई जोर..

अक्षिणी

मौसम की शाखों पर..

मौसम की शाखों पर
यादों के झूमर
बादल की बाहों में
खुशियों की झालर
सावन के हाथों से
सजती धरती पे
हरियाली की चादर
इन्द्रधनुष के स्वप्निल
रंगों सी ज़िंदगी तू
बहुत खूबसूरत है..

मौसम की शाखों पर
यादों की कश्ती..
बूँदों की सरगम पर ,
चाहों की मस्ती..
भीगी बरखा संग
बातों की बस्ती..
और एक अदद,
चाय की चुस्की..
खूबसूरत है ज़िंदगी..

अक्षिणी

गुरुवार, 9 अगस्त 2018

वो बादलों के फाहे..

संजो कर रखे वो बादलों के फाहे
अक्सर उभर आते हैं गाहे-बगाहे
तकते रहते हैं बहानों की राहें
भिगो जाते हैं ढाढ़स की बाहें

हल्की सी आहट पे बरस जाएं,
यादों की झिरमिर को परस जाएं
भीतर बाहर सब तर कर जाए
तकियों के गिलाफों की पनाहें

दिन के उजाले ज़रा न चाहें,
दर्द की रस्मे रात की छाहें..
सुख की थपकी दुख की आहें
मन के रिश्ते ये खूब निबाहें

संजो कर रखे वो बादलों के फाहे
अक्सर उभर आते हैं गाहे-बगाहे..

अक्षिणी

सोमवार, 6 अगस्त 2018

अच्छे दिन..

एक बार एक चूहा था..
चूहे को लाल मखमल का एक टुकड़ा मिला...
वो मखमल का टुकड़ा ले कर दर्जी के पास गया, बोला मेरी सुंदर सी टोपी सिल दो..
दर्जी ठठाकर हँस पड़ा..बोला अब ये दिन आ गए हैं..चूहे भी टोपी पहनने लगे हैं..और वो भी मुझसे सिलवा कर..?
चूहा बोला..आखिर यही तो हैं....
दर्जी ने कहा-नहीं सिलता.. जा जो बनता है कर..
चूहा बोला-
राजा के पास जाऊँगा ,
चार सिपाही लाऊँगा
सोलह डंडे पिटवाऊँगा
मैं खड़ा खड़ा तमाशा देखूँगा..
दर्जी डर गया और टोपी सिल दी..
चूहा टोपी पहन कर इठलाने लगा...

बस टोपी क्या मिली चूहे का दिमाग दौड़ने लगा.भागा भागा गोटे वाले के पहुँचा,बोला ऐ गोटेवाले जरा मेरी टोपी में सितारे लगा दो.
गोटे वाले ने कहा-किस फालतू दर्जी ने सिली है ये?मैं नहीं लगाने वाला.भाग यहाँ से.
चूहा बोला-दिल्ली के दर्जी ने सी है.सितारे लगा वरना राजा के पास जाऊँगा...
राजा के पास जाऊंगा ,
चार सिपाही लाऊँगा
सोलह डंडे पिटवाऊँगा
मैं खड़ा खड़ा तमाशा देखूंगा..
गोटे वाला क्या करता सितारे लगा दिए..
सितारों वाली लाल टोपी लगा कर चूहा सीधे राजा के घर पहुँचा,बोला-ऐ राजा,
ये गद्दी मेरी है.अब मैं राज करूंगा.
राजा ने कहा - अच्छा..टोपी पहन ली तो राजा हो गया..दिल्ली वाला समझा है क्या? भाग यहाँ से..
अब तो चूहा बिफर गया..वहीं पसर गया..
राजा ने उसे झरोखे में बिठा दिया.
आते जाते लोग देखते और कहते..
ये देखो टोपी वाला चूहे के अच्छे दिन आए हैं..
टोपी वाले चूहे की शान देख शहर के सारे चूहों ने अब गठबंधन कर लिया है.सब के सब लाल मखमल का टुकड़ा ढूंढ रहे हैं..हरा गोटा हाथ में ले कर..
क्या इनके अच्छे दिन आऐंगे...?
अच्छे दिन..😂

अक्षिणी

अपनी भी कहानी..

अपनी भी कहानी कुछ ऐसी है..
यादों के आँचल में अटकी
बातों के छल्लों जैसी है,
बादल की बाहों में उड़ते फाहों जैसी है..
इस पल मेरे पास कहीं
तो उस पल तेरे साथ सही..
खट्टी मीठी इमली के चटखारों जैसी है..

अपनी भी कहानी कुछ ऐसी है,
छाली में छनती राखों जैसी है,
काली सी रात में सांपों जैसी है,
तुझको मुझको छू जाएगी,
प्याली में चाय की भापों जैसी है..

अक्षिणी

फिर एक बार

यूपी के एक्सप्रेस वे पर बिखरा
सपा के सच का सीमेंट
बंगाल की सड़कों पर टीएमसी
की गृहयुद्ध की धमकी
यहाँ वहाँ हाथ पैर मारती काँग्रेस
के घोटालों का चिठ्ठा
शिवसेना का शांति दूतों को
आरक्षण  का सब्ज़बाग
यदि यही विपक्ष के हालात हैं तो
2019 में मोदी फिर एक बार है

अक्षिणी

वाह री ज़िंदगी..

वाह री ज़िंदगी तू भी,
गज़ब की तरंग है..
बदलती मौसमों से रंग है..

वाह री ज़िंदगी तू भी,
गज़ब की दबंग है..
मचलते हौसलों की जंग है..

वाह री ज़िंदगी तू भी,
अजब एक पतंग है..
पलटती डोरियों से तंग है..

अक्षिणी

वाह री ज़िंदगी तू भी,
मस्त एक मलंग है..
डूबते साहिलों के संग है..

जागो..

जागो और भागो,
सो कर किसने कुछ पाया है..
धूप को जिसने अपनाया,
साथ उसी के चलती छाया है..

शमशीर उठाओ,
कर्मयुद्ध का घोष है आया..
जयगीत उसी के बनते आए,
वक्त से जो लड़ता आया है..

अक्षिणी

बोलती खामोशियाँ..

बोलती खामोशियाँ हैं ,
उम्र की मदहोशियाँ हैं ,
मिलती नहीं अब तो कहीं,
खो गई सरगोशियाँ हैं..

बोलती खामोशियों से कुछ लोग,
कुछ ना कह कर सब कह जाते हैं..

अक्षिणी

रविवार, 22 जुलाई 2018

दस्तक..

बस यही सोच कर
दस्तक नहीं देते तेरे दर
कहीं तू ये न कह दे
कल ही तो मिले थे..
शिकवा तुझ से नहीं,
तेरी नज़दीकियों से है..
तुझ तक पहूँचें और
सफर वहीं थम न जाए..

अक्षिणी

शुक्रवार, 20 जुलाई 2018

बच्चों को बच्चा रहने दो..

बच्चों को बच्चा रहने दो,
जो मुँह में आए कहने दो..
बच्चों को बच्चा रहने दो,
जो जी में आए करने दो..

हाथ की थाप ना लग पाए,
साँच की आँच ना छू पाए
तप के न कहीं ये पक जाए,
माटी के इन घड़ों को
कच्चा रहने दो..

बच्चों को बच्चा रहने दो..

अक्षिणी

रविवार, 1 जुलाई 2018

कब तक..

गुस्सा कम बेचारगी का
अहसास ज्यादह..
हर बार की तरह शोर होगा
कुछ मोमबत्तियाँ जलेंगी
कुछ तसवीरें होंगी
लम्बी बड़ी तकरीरें होंगी
जुलूस निकाले जाएंगे
नारे लगाए जाएंगे
फिर बगैर कुछ किए
घर जा कर सो जाएंगे,
किसी और चीख की
आवाज़ पर जागने के लिए,
यही सब कुछ दोहराने के लिए..
आखिर कब तक..?

अक्षिणी

एक कोख फिर..

सहमा सा  है हर कदम
डरा डरा सा है ये मन
कातर आँखों में छलक
आई है बेबसी
मासूम चेहरे पे झलक
आई है बेचारगी
छली गई है बिटिया
एक बार फिर
उजाड़ी गई है नन्ही सी
एक कोख फिर..
हैवानियत की हदों के पार,
शब्द नहीं बस सन्नाटे हैं
वहशी हवस के थपेड़ों की मार
पत्थर भी चीखे जाते हैं..
जाने कैसे ये भेड़िए
ईंसान कहे जाते है..

#भेड़िए

अक्षिणी

शनिवार, 30 जून 2018

अजनबी आईने..

शहर के आइने अब अजनबी से लगे हैं,
जानते ज़रूर हैं मगर पहचानते नहीं हैं..

अक्षिणी

मंगलवार, 26 जून 2018

कोलाहल के आगे...

Where sound can not travel light can..let there be light of inner peace and contentment without the usual contortions of sound..

देखो कैसा कोलाहल है
बाहर भीतर फैला जंगल
शून्य हुए सारे स्पंदन

कोलाहल के शून्य में
खो जाते स्वर संज्ञा के
कैसे सुन पाएं स्वर प्रज्ञा के

आवाज़ों के कोलाहल को
त्याग चलो और मौन चुनो,
सारे अंधियारे सो जाऐंगे,

अंतरतम का मौन सुनो,
दीप्ति लिए संतृप्त चलो ,
मन में उजियारे हो जाऐंगे..

अक्षिणी

रविवार, 24 जून 2018

दोस्त..

उसने एक ही बार कहा कि व्यस्त हूँ,
फिर मैंने कभी नहीं कहा कि मैं दोस्त हूँ..

अक्षिणी

शनिवार, 23 जून 2018

ट्विटर के दोहे..

फेसबुक से वाट्सएप को,
वाट्सएप से ट्विटर को आए
ट्विटर से भी बोर हुए,
अब "शिकंजी" कहाँ जाए..

ट्विटर खेलन मैं चली,
अकाउंट लियो बनाय
बार बार के ट्विटते,
"शिकंजी" गई बौराय

ट्विटर ट्विटर मैं करूँ,
अंगुली गई थकाय,
ट्विटत ट्विटत ओ "शिकंजी",
दिमाग दही होई जाय..

आरटी आरटी सब करे,
आरटी मिले न मोय,
लाईक लाईक देख "शिकंजी",
मनवा मोरा रोय..

कोई ट्विट तो यूँ चले,
चार आरटी होय जाए.
इशक विशक की शायरी,
"शिकंजी" को जरा ना आए ..

ट्विटर की महिमा का कहें,
सब कुछ दियो पढ़ाय.
गाली जानत ना "शिकंजी",
ट्विटर दीन्ह सिखाय..

आरटी ढूंढन मैं चली,
आरटी मिले न हाय,
लाईक लाईक के फेर में,
"शिकंजी",ट्विट अकारथ जाए.

देर रात तक ट्विटर चले,
उल्लू बन ट्विटियाए..
नहाय धोय के हाय "शिकंजी",
ट्विटर पर डट जाए..

अक्षिणी