मंगलवार, 26 जून 2018

कोलाहल के आगे...

Where sound can not travel light can..let there be light of inner peace and contentment without the usual contortions of sound..

देखो कैसा कोलाहल है
बाहर भीतर फैला जंगल
शून्य हुए सारे स्पंदन

कोलाहल के शून्य में
खो जाते स्वर संज्ञा के
कैसे सुन पाएं स्वर प्रज्ञा के

आवाज़ों के कोलाहल को
त्याग चलो और मौन चुनो,
सारे अंधियारे सो जाऐंगे,

अंतरतम का मौन सुनो,
दीप्ति लिए संतृप्त चलो ,
मन में उजियारे हो जाऐंगे..

अक्षिणी

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