शुक्रवार, 1 जून 2018

एक कविता रोज की हो..

ओज की हो , सोज की हो,
बावरे मन की मौज की हो
बस एक कविता रोज की हो..

रोष की हो, दोष की हो,
धूप के साये में
छाँव के मधुकोष की हो,
बस एक कविता रोज की हो..

जोश की हो, होश की हो,
गाजरों तक दौड़ते
खरगोश की हो..
एक कविता रोज की हो..

अक्षिणी

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