हमारी हिन्दी..
सर्वरूप अलंकार लिए
चंद्रबिंदु अनुस्वार लिए
स्वर व्यंजन की झंकार लिए
सब रूपक रूप श्रृंगार किए
साहित्य सृजन का भार लिए
आँचल में रचना संसार लिए
पद सम्मान को तृषित
अपने अधिकार से वंचित
एक रूपवती भिखारिन सी
एक भटकी बंजारिन सी
हमारी ओर देख रही है
और कह रही है
"हैप्पी हिन्दी डे"
अक्षिणी
अति सुन्दर 👌👌👌
जवाब देंहटाएंबेहतरीन
जवाब देंहटाएं