कुछ यूँ ही खाने का दिखावा
किया करते हैं कुछ लोग..
खाने को होता कुछ नहीं..
पानी पर जिया करते हैं कुछ लोग..
कहने को बेमुरव्वत से हैं,
नारों संग चिल्लाते नहीं कुछ लोग..
वतन पे आए तो
जां से गुजर जाया करते हैं कुछ लोग..
सोचते नहीं जरा,
बेबाक जिया करते हैं कुछ लोग..
अपनी पे जो आए तो
बेख़ौफ सच कह जाया करते हैं कुछ लोग..
पहचानते नहीं ज़रा,
नज़र चुरा निकल जाते हैं कुछ लोग..
नज़र में जो आएं जरा
नज़रों से उतर जाया करते हैं कुछ लोग..
अक्षिणी
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