शुक्रवार, 28 दिसंबर 2018

बेचते हैं..

आतंकियों के पैरोकार
कुछ भी करेंगे
कुर्सी के लिए
कभी भी,कहीं भी
किसी भी हद तक
ये गरीब की आह बेचते हैं
ये शहीद की चाह बेचते हैं
मतलबी अय्यार ये
बर्बादी के असलाह बेचते हैं
खानदानी सौदागर हैं
ये पुश्तैनी गद्दार हैं
ताज जो मिले तो ये
वतन को सरे बाजार बेचते हैं

अक्षिणी


*असलाह-हथियार

अक्षिणी

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