शुक्रवार, 28 दिसंबर 2018

क्यों..

क्यों व्यर्थ चिंतन करना है?
क्यों व्यर्थ मनन करना हैं?

जो कल था वो आज नहीं,
जो आज है वो कल कहाँ..
ये आज की बात कल,
कोई कब कह पाया है..

क्यों वादविवाद में फंसना है?
क्यों प्रत्युत्तर में धँसना है?
जब मौसम हर पल बदलना है,
क्यों बहस मुबाहिसा करना है?

अंतरजाल के इस चहकते,
जंजाल में जाने कैसी माया है.

जाने किस हत्थे के पीछे
किस तिलिस्म की छाया है
प्रकृति है,पुरूष है कोई
महामुनि है या महामाया है.

आज अहम् है जो विषय
कल बासी हो जाना है.
चर्चा परिचर्चा से बस
अपना ज्ञान बढ़ाना है.

फिर क्यों चिंतन करना है
क्यों माथे पर बल भरना है

अक्षिणी

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