आईना बन जी रहे हैं इन दिनों, मन में झांक लिया करते हैं.. आते-जाते गाहे-बगाहे ख़ुद को, ख़ुद ही आंक लिया करते हैं..
कोलाहल के कोहरे से दूर, भीतर जी रहे हैं इन दिनों.. इससे उससे मिलते आए, खुद से मिल रहे हैं इन दिनों..
अक्षिणी
Badiya....
Badiya....
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