रविवार, 1 जुलाई 2018

एक कोख फिर..

सहमा सा  है हर कदम
डरा डरा सा है ये मन
कातर आँखों में छलक
आई है बेबसी
मासूम चेहरे पे झलक
आई है बेचारगी
छली गई है बिटिया
एक बार फिर
उजाड़ी गई है नन्ही सी
एक कोख फिर..
हैवानियत की हदों के पार,
शब्द नहीं बस सन्नाटे हैं
वहशी हवस के थपेड़ों की मार
पत्थर भी चीखे जाते हैं..
जाने कैसे ये भेड़िए
ईंसान कहे जाते है..

#भेड़िए

अक्षिणी

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