वाह री मेरी आज की नारी,
तेरी मुश्किल है सच में भारी..
अबला से सबला के हवन की
तू जलती छलती इक चिंगारी
छूने थे तुझे नये आसमान,
भरनी थी जब तुझे उड़ान..
सीढ़ियों पे रख कदम,
चढ़ती गई सब सोपान..
वाह री मेरी आज की नारी,
तेरी मुश्किल है सच में भारी..
बुलंदी की चाह में किस कदर,
मजबूर थी तब वक्त की मारी..
बिछती रही हर दर हर चौखट,
मंजूर थी तुझे वो शर्ते सारी..
वाह री मेरी आज की नारी,
तेरी मुश्किल है सच में भारी..
उम्र बिताई बन अबला बेचारी,
जीती आई जैसे तैसे मारी मारी..
जो दिखी राह तो मुँह खोला है,
बदला चुन चुन लेगी बारी बारी
वाह री मेरी आज की नारी,
तेरी मुश्किल सच है भारी..
अक्षिणी
v.v nice poem aksini mam
जवाब देंहटाएं"umra bitai jaise taise ban abla bichari
fir bhi nahi aaye daya rahana chahate he ab vi bhari ye dunia hamari
wah re meri aaz ki nari