गुरुवार, 18 अक्टूबर 2018

जख़्म अपने हैं..

आँख भर आए तो पलकों में छुपाए रखिए..
हँसते रहिए, खुशियों का भरम बनाए रखिए..

आह भर आए तो होठों में दबाए रखिए,
कुछ ना कहिए,जमाने को लजाए रखिए..

दिल की कह देंगी,निगाहों को झुकाए रखिए,
रात मुश्किल है, सुबह को बुलाए रखिए..

हैं जो ज़िंदा तो साँसों में तराने रखिए,
राह मिल जाएगी, ठोकर पे जमाने रखिए..

दर्द दिल के हैं , पत्थर के सहारे रखिए,
जख़्म अपने हैं , मरहम न पराए रखिए..

अक्षिणी

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