गुरुवार, 9 अगस्त 2018

वो बादलों के फाहे..

संजो कर रखे वो बादलों के फाहे
अक्सर उभर आते हैं गाहे-बगाहे
तकते रहते हैं बहानों की राहें
भिगो जाते हैं ढाढ़स की बाहें

हल्की सी आहट पे बरस जाएं,
यादों की झिरमिर को परस जाएं
भीतर बाहर सब तर कर जाए
तकियों के गिलाफों की पनाहें

दिन के उजाले ज़रा न चाहें,
दर्द की रस्मे रात की छाहें..
सुख की थपकी दुख की आहें
मन के रिश्ते ये खूब निबाहें

संजो कर रखे वो बादलों के फाहे
अक्सर उभर आते हैं गाहे-बगाहे..

अक्षिणी

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