अपनी भी कहानी कुछ ऐसी है..
यादों के आँचल में अटकी
बातों के छल्लों जैसी है,
बादल की बाहों में उड़ते फाहों जैसी है..
इस पल मेरे पास कहीं
तो उस पल तेरे साथ सही..
खट्टी मीठी इमली के चटखारों जैसी है..
अपनी भी कहानी कुछ ऐसी है,
छाली में छनती राखों जैसी है,
काली सी रात में सांपों जैसी है,
तुझको मुझको छू जाएगी,
प्याली में चाय की भापों जैसी है..
अक्षिणी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें