दूर कोई रो रहा है,
धैर्य अपना खो रहा है,
हिचकियों के साथ
घुटती साँस कोई ले रहा है..
कौन हैं पाषाण जो,
तोलते हैं, मोलते हैं,
अंधेरे स्याह कोनों में
टटोलते हैं नन्हीं बालियों को,
कौन हैं जो संज्ञा शून्य हैं..?
कौन हैं वो?
आप , मैं या हम सब..?
कौन हैं ..?
जो लगाते हैं ये मंडियाँ..
कौन हैं..?
जो उठाते हैं ये हुंडिया..
करते हैं व्यापार,
मासूम सपनों का..
सजाते हैं बाज़ार,
नाजुक कलियों का..
कौन हैं..
आप, मैं या हम सब..
कौन हैं..?
उत्सवों में, त्योहारों में,
शादियों में
कनातों के पीछे
दबोचते हैं भेड़िए ..
आदमी के खाल में,
नोंचते हैं कोंचते हैं..
कौन हैं..?
वो नरपिशाच..
कौन हैं..?
वो दरिन्दे..
कौन हैं..?
आप, मैं , ये , वो,
कौन हैं..?
हम में से ही तो कुछ हैं..
या हम सब?
अक्षिणी
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