कुछ भी कहिए वित्तमंत्री जी मजा नहीं आया
राॅकेट की उम्मीद थी अनार भी नहीं चलाया.
इस बार का बजट मन को नहीं भाया
यकीन मानिए जरा भी समझ नहीं आया.
न बुलेट ट्रेन चलाई न भाड़ा बढ़ाया
फालतू में रेल बजट को साथ मिलाया
खोई बाजी खाली अपना दाँव लगाया
खूब था मौका तुमने यूं ही क्यों गंवाया?
कठिन घड़ी है चुनावों ने द्वार बजाया
फिर भी ना कोई तुमने तीर चलाया
चुनाव आयोग का तुम पै था साया
क्या था डर ,क्यों तुम्हारा जी घबराया?
ढूँढने वाले ढूँढ ही लेंगे बारीकियाँ इसकी,
उजालों में बदल ही देंगे तारीकियाँ इसकी,
लेकिन बँधु मेरा नन्हा दिल घबराया
यकीन मानिए बिल्कुल मजा नहीं आया
कच्चा पक्का अटका भटकाशेर सुनाया
खूब समय था रट्टा काहे नहीं लगाया?
फिर पुराना भूरा बक्सा साथ में आया
नये रंग में इसको क्यूं नहीं रंगाया?
पार्टी घिरी खड़ी है,दुश्मनों ने हाथ मिलाया
ताक देखते पप्पुकेजरी और ममता माया
इनको हँसने का क्यूं तुमने बहाना दिलाया?
मेरी समझ में जरा न आया, जरा न भाया..
अक्षिणी भटनागर
एक उत्कृष्ट रचना- सामयिक कटाक्ष एवं विचारणीय.
जवाब देंहटाएंवास्तव में प्रशंसनीय
धन्यवाद.
जवाब देंहटाएं