मंगलवार, 14 फ़रवरी 2017

रसोई..

सब बेलन तसले लाए थे
और चमचे सभी सजाए थे.
ये अम्मा की रसोई थी,
जो बटर बार से धोई थी
चढ़ती रोज कड़ाही थी ,
बँटती खूब मलाई थी.
भाई भतीजे रोज न आते,
नौकर सारे छक के खाते.
घी शक्कर में ऐसी डूबी,
अम्मा अपनी चाल भूल गई.
चूल्हे रखके जलती देखो ,
काली अपनी दाल भूल गई.
जाते-2 वो पनीर छोड़गई,
उसपै थोड़ा खमीर छोड़ गई.
दासी थी जो रानी हो गई,
सत्ता की दीवानी हो गई..
दासी ने फिर देखा मौका,
झटपट उसने पकड़ा चौका.
सब छूरी काँटे लाई थी ,
चमची बहुत चलाई थी.
अब नई अम्मा की रसोई थी,
फिर बँटने लगी मलाई थी.
पलटे सारे भाग पांडिया,
चौराहे पै फूटी हाँडिया.
अब जेल का आटा खाती है
और व्यंजन वहीं बनाती है..

अक्षिणी भटनागर..

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें