प्रदेश ऋणी है आपका,
बहुत धन्य हैं आप,
बहुत बड़ा है त्याग,
आपने नहीं किया विवाह.
नहीं बसाया घर-संसार,
बहुत बड़ा है ये उपकार.
नहीं बढ़ाया धरती पै भार,
नहीं बनाया तुमने परिवार.
माया होकर मोह को छोड़ा,
जाने कितनों का दिल तोड़ा.
कोई तो मिल ही जाता तुमको,
जो लेकर आ जाता वर-घोड़ा.
ये कुर्सी अपनी छोड़ जो पाती,
तुम भी सुघड़ गृहिणी बन जाती.
दादा-दादी को मिल जाते पोते-पोती,
हवाई जहाज से तुम उतर जो पाती.
पर माया तुम तो ठहरी महा ठगिनी,
कौन बनाता तुम को जीवन-संगिनी.
माया तुम तो निकली खूब हठीली,
उस पर तबियत तेरी खूब रंगीली.
अपना घर जो नहीं बसाया,
भाई को फिर खूब बढ़ाया.
सब रिश्ते नाते साथ लिए और
सत्ता-सुख सबको दिलवाया.
देर नहीं है हुई अभी तक ,
दिग्गी जी से कुछ सीखो.
चुन लो जिसको तुम चाहो,
रचलो मेहंदी घूंघट खींचो..
अक्षिणी भटनागर
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