शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2017

बेफ़िकर...

हाशियों पै गुजरी है उमर 'इंतिहा'
हादसों की फ़िक्र क्या.
निगाहों ने जिए समंदर तमाम,
बारिशों का ज़िक्र क्या..

अक्षिणी भटनागर

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