मंगलवार, 28 फ़रवरी 2017

प्रभात

दूर क्षितिज पर बिखर गई है सूर्य किरन,
स्वर्णिम आभा से आलोकित मन आंगन.

अलसाई आंखों से जाग उठा है थिर चेतन,
विधना की कविता में झूमें नील गगन.

लो देख रहा नभ सूरज का पारायण,
धरती ने लो खोल दिए सारे वातायन.

माटी की सुरभि से महके चहुँ ओर सुमन,
चिड़ियों की चहचह में गूंजे मंगल गायन.

नव पल्लव ने ओढ़ लिया है चिर यौवन,
जन मन पर है आल्हा का आरोहण.

नव जीवन से स्पन्दित है धानी आँचल,
जन जन करता ऊषा का आलिंगन.

अक्षिणी भटनागर
@bornsmart01

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