अभूतपूर्व दृश्य है कपोल कल्पना का
एक च्यूइंग-गम छाप निर्देशक
और उनके खयालों में बसा आततायी,
जिसके सपनों में दिखे प्रीत के क्षण,
सदियों से जो था लूटेरा
वो कर रहा आलिँगन,
आलिँगन भी किससे?
जिसके सतीत्व का साक्षी
रहा स्वयं समय..
सृजन की स्वतंत्रता है ये
या उच्छृंखलता?
या दुस्साहस..?
और क्यों..?
-अक्षिणी भटनागर-
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