मिट्टी को आकार देता हूँ,
सपनों को आधार देता हूँ,
सिर्फ एक शिक्षक हूँ मैं,
शिक्षा का उपहार देता हूँ ।
नहीं जानता कितने मूल्य सिखा पाता हूँ,
मानव मन के कितने भेद दिखा पाता हूँ,
कोशिश करता हूँ जोत जगाने की पर ,
नहीं जानता कितनी राह दिखा पाता हूँ.
भोली बोली को भाषा करता हूँ,
बोझिल मन में आशा भरता हूँ ,
जीवन गुत्थी सुलझाने को मैं ,
नित नया तमाशा करता हूँ ।
सहमी आँखें पढ़ लेता हूँ ,
बिखरे मन को सहेज लेता हूँ,
कहने को कुछ नहीं बनाता
पर गीली मिट्टी में छवि उकेरता हूँ ।
बहुत अधिक की चाह नहीं रखता,
सत्य पर अड़ना सिखाता हूँ,
छल प्रपंच की राह नहीं चलता,
मुश्किलों से लड़ना सिखाता हूँ ।
कर्म पर विश्वास करता हूँ ,
धर्म का आह्वान करता हूँ ।
कहने को सिर्फ शिक्षक हूँ मैं,
जीने का अधिकार देता हूँ ।
अक्षिणी
शनिवार, 14 जनवरी 2017
शिक्षक हूँ मैं..
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