शुक्रवार, 27 जनवरी 2017

रानी

बाहर बैरी बोल रहा था
राणा की ताकत तोल रहा था,
न्याय दंड भी डोल रहा था
लहू राज का खौल रहा था,
यवनों ने रजपूती शान उगाही थी
माँ बहनों को लाज बचानी थी
राह न कोई खुल पाई और
बैरी की टोली चढ़ आई थी
बात मान पर ठन आई थी
आन बान पर बन आई थी
साथ सहेली ले बैठी और
अर्घ्य आग को दे बैठी
सुलग उठी थी चिंगारी और
लपक रही थी लपटें भारी
धधक रहे थे अंगारे और
कूद पड़ी थी ललनाऐं .
रूपगर्विणी मान रक्षिणी नारी थी
नाम पद्मिनी रतन सिँह की रानी थी
देह त्यागती ये एक क्षत्राणी थी
ये गढ़ चित्तौड़ की रानी थी..
दुःखद चित्र था
विषद् दृश्य था
जौहर कोई खेल नही था
गीत संगीत का मेल नही था..

अक्षिणी भटनागर

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