बुधवार, 11 जनवरी 2017

समानता का अधिकार..

Rसुबह-सुबह गरमागरम खबरों के साथ चाय सुड़कते हुए ठंड से हमारी जंग बदस्तूर जारी थी.अचानक पड़ोस का दरवाजा खुला और शाॅल स्वेटर में लिपटी काम वाली बाहर निकली. दायें-बायें देखा और पिच्च्....सड़क पर रंगोली बना द्रुत गति से अगले घर में घुस गई..
हमने भी भीतर का रुख किया ही था कि सब्जी  वाले की पुकार सुनाई दी.हमें बढ़ती महँगाई का अहसास करा वो चलने लगा और पिच्च्....
सड़क पर एक नयी रंगोली बना ये भी चल दिया..
नौ बजे का समय, दफ्तर की तरफ हमारी नियमित फार्मूला वन जारी थी और मन ही मन आगे चल रही लक्ज़री सेडान की मंथर गति को को कोसा जा रहा था कि चमकदार गाड़ी का शानदार दरवाजा खुला, सूट-बूट धारी एक ऐंठी हुई गर्दन आधी बाहर लटकी और पिच्च्....
इस बार की रंगोली के कुछ छींटे आस पास की गाड़ियों तक भी पहुंचे और ठक से कार के दरवाजा बंद हो गया.
गाड़ी अपनी गति से चलती रही और समानता का अधिकार हमारा मुंह चिढ़ा गया. कोने में लगा स्वच्छ भारत का पोस्टर ठहाका मार के हँस पड़ा..

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