मंगलवार, 28 फ़रवरी 2017

मेहर की मेहर

लो अब मेहर चली नैहर.
जलता रहे ये गाँव ये शहर,
लो अब मेहर चली नैहर.
बाँट कर मुल्क में नफरतों का जहर
बरपा कर कच्चे पन्नों में कहर,
लो अब..
दिखा के तख्तियां पहर दो पहर
उठा कर समंदर में शोलों की लहर,
लो अब..
झूठ के दम बुलंदियों पै थी नजर,
सच के सामने सका न जो ठहर.
लो अब..

अक्षिणी भटनागर

प्रभात

दूर क्षितिज पर बिखर गई है सूर्य किरन,
स्वर्णिम आभा से आलोकित मन आंगन.

अलसाई आंखों से जाग उठा है थिर चेतन,
विधना की कविता में झूमें नील गगन.

लो देख रहा नभ सूरज का पारायण,
धरती ने लो खोल दिए सारे वातायन.

माटी की सुरभि से महके चहुँ ओर सुमन,
चिड़ियों की चहचह में गूंजे मंगल गायन.

नव पल्लव ने ओढ़ लिया है चिर यौवन,
जन मन पर है आल्हा का आरोहण.

नव जीवन से स्पन्दित है धानी आँचल,
जन जन करता ऊषा का आलिंगन.

अक्षिणी भटनागर
@bornsmart01

सोमवार, 27 फ़रवरी 2017

तू देश हेतु जी..

नौजवान हिंद के तू देश को प्रणाम कर,
देश हेतु काम कर, तू देश हित में जी,

ये आज की चुनौतियाँ,
न तीर है न बाण है , न जंग है जो जान दे.
तू देश हित में जी..

हो लक्ष्य पै निगाह अब,
न राह से भटक कहीं, तू व्यर्थ में अटक नहीं.
तू देशहित में जी..

है मुश्किलों का दौर ये,
हौसलों से काम कर,जो रूक गये तो हार है.
तू देशहित में जी..

नौजवान हिंद के तू देश को प्रणाम कर,
देश हेतु काम कर, तू देशहित में जी..

अक्षिणी भटनागर

शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2017

जी लेंगे..

तमाम गिले शिकवों के पार,
स्वीकार हैं सब तेरे उपहार.
जब जिस तरह मिले जिंदगी,
इंतिहा तुझे जी लेंगे हर बार..
-अक्षिणी भटनागर-

समर्पण

मन कर्म तेरे नाम पर..
सब पुण्य तेरे नाम हो..
है धर्म तुझको समर्पित..
सब मर्म तेरे नाम हो..
सब शब्द तेरे वास्ते..
और अर्थ तेरे नाम हो..
बस एक तेरा नाम और
स्नेह मेरे साथ हो..
-अक्षिणी भटनागर-

गुरुवार, 23 फ़रवरी 2017

सब नाम शिव ..

आरंभ तुम से है और अंत तुम,
सब अंत तुमसे और अनंत तुम.

सब जन्म तुम से और मृत्यु तुम,
है काल तुम से,  महाकाल तुम.

हो आदि तुम और अनादि तुम,
सब ज्वाल तुम से विकराल तुम.

सब दृश्य तुम से और अदृश्य तुम,
सब हव्य तुम से और  यज्ञ तुम.

है सत्य तुमसे और भ्रम भी तुम,
निष्प्राण तुमसे और नवप्राण तुम.

यह कर्म ध्वज तुमको समर्पित,
सब मार्ग तुमसे और लक्ष्य तुम.

सब पुण्य तुमसे,हो कल्याण तुम,
यह विश्व तुम से , सब नाम शिव,

-अक्षिणी

सोमवार, 20 फ़रवरी 2017

धन्य हैं आप..

प्रदेश ऋणी है आपका,
बहुत धन्य हैं आप, 
बहुत बड़ा है त्याग,
आपने नहीं किया विवाह.

नहीं बसाया घर-संसार,
बहुत बड़ा है ये उपकार.
नहीं बढ़ाया धरती पै भार,
नहीं बनाया तुमने परिवार.

माया होकर मोह को छोड़ा,
जाने कितनों का दिल तोड़ा.
कोई तो मिल ही जाता तुमको,
जो लेकर आ जाता वर-घोड़ा.

ये कुर्सी अपनी छोड़ जो पाती,
तुम भी सुघड़ गृहिणी बन जाती.
दादा-दादी को मिल जाते  पोते-पोती,
हवाई जहाज से तुम उतर जो पाती.

पर माया तुम तो ठहरी महा ठगिनी,
कौन बनाता तुम को जीवन-संगिनी.
माया तुम तो निकली खूब हठीली,
उस पर तबियत तेरी खूब रंगीली.

अपना घर जो नहीं बसाया,
भाई को फिर खूब बढ़ाया.
सब रिश्ते नाते साथ लिए और
सत्ता-सुख सबको दिलवाया.

देर नहीं है हुई अभी तक ,
दिग्गी जी से कुछ सीखो.
चुन लो जिसको तुम चाहो,
रचलो मेहंदी घूंघट खींचो..

अक्षिणी भटनागर

रविवार, 19 फ़रवरी 2017

घर द्वार देखो..

सुनो मेरी चाचियों सुनों मेरी ताईयों,
सुनो मेरी बहनों सुनो भौजाईयों.
ज़रा अपनी सूती साड़ियां ऊपर रखो,
कोई रेशमी  अच्छी साड़ियां पहन लो.

सुनो मेरी...
थोड़ा अपना चौका बासन देख लो,
थोड़ा अपना घर द्वार बुहार लो.
बहुत हो गए चुनाव दौरे,
अब फुरसत ही फुरसत है.

सुनो मेरी..
जो हार गए तो आराम है
पांच बरस कोई हुज्जत नहीं..
जीते तो सरकार हम चलाएंगे,
तुम्हारी कोई जरूरत नहीं..

अब तुम अपना घर द्वार देखो,
टाबर ढांगर परिवार देखो..

अक्षिणी भटनागर

गुरुवार, 16 फ़रवरी 2017

चीफ मिनिस्टरन के बिटवा

पप्पु टीपू से आगे बढ़ीं,
तनी बिहार का रूख करीं.
जिहाँ लालू के ललवा
दिखावत आपन जलवा
इ हैं दुई दुई CM के बचवा,
आपन बायो मा बतावत सबका,
डिप्टी सीएम इहे न बतावत बानी ,
कितना पचाय लिए हैं भैंसिया के चरवा.

अक्षिणी भटनागर

मंगलवार, 14 फ़रवरी 2017

रसोई..

सब बेलन तसले लाए थे
और चमचे सभी सजाए थे.
ये अम्मा की रसोई थी,
जो बटर बार से धोई थी
चढ़ती रोज कड़ाही थी ,
बँटती खूब मलाई थी.
भाई भतीजे रोज न आते,
नौकर सारे छक के खाते.
घी शक्कर में ऐसी डूबी,
अम्मा अपनी चाल भूल गई.
चूल्हे रखके जलती देखो ,
काली अपनी दाल भूल गई.
जाते-2 वो पनीर छोड़गई,
उसपै थोड़ा खमीर छोड़ गई.
दासी थी जो रानी हो गई,
सत्ता की दीवानी हो गई..
दासी ने फिर देखा मौका,
झटपट उसने पकड़ा चौका.
सब छूरी काँटे लाई थी ,
चमची बहुत चलाई थी.
अब नई अम्मा की रसोई थी,
फिर बँटने लगी मलाई थी.
पलटे सारे भाग पांडिया,
चौराहे पै फूटी हाँडिया.
अब जेल का आटा खाती है
और व्यंजन वहीं बनाती है..

अक्षिणी भटनागर..

खामोशियों..

खामोशियों का लिबास पहने
बारहा तुझे देखा किए,
दिल को पहुंचे दिल की राहें
'इंतिहा' यही सोचा किए..

-अक्षिणी भटनागर-

सोमवार, 13 फ़रवरी 2017

दिन है..

मुबारक हो यारों प्यार का दिन है,
इजहार का दिन है,इकरार का दिन है.
बिकने लगा है सरे आम 'इंतिहा',
आज इश्क के बाज़ार का दिन है.

अक्षिणी भटनागर

सत्ता

दोष नहीं ये तेरा मेरा,
ये सब सत्ता का है फेरा
सत्ता नागिन जिसको डसले
न देखे वो कभी सवेरा.

सत्ता चलती,सत्ता छलती,
सत्ता पलती, सत्ता जलती,
सत्ता नागिन जिसको डसती,
न देखे वो कभी सवेरा.

सत्ता मिलती पत्ता खुलता,
सत्ता मिलती रस्ता खुलता,
ताकत की बर्रों का,
फिर छत्ता खुलता.

सत्ता के आइने की
झूठी सब तसवीरें हैं.
सत्ता के अंधियारों ने ,
पलटी सब तकदीरें हैं.

सत्ता जिसकी चर्चा उसका,
सत्ता जिसकी पर्चा उसका.
चित भी उसकी पट भी उसका,
झंडा उसका डंडा उसका.

सत्ता भुलाए सारे रिश्ते ,
सत्ता दिखाए झूठे चेहरे.
सत्ता बिठाए सच पै पहरे,
सत्ताधारी अंधे बहरे..

सत्ता की लत ऐसी लगती,
लाइलाज ये सत्ता का रोग.
सत्ता देती ऐसी पटकी
सत्ता सिखाए सारे ढोंग.

सत्ता नहीं ये सदा किसी की,
सत्ता आनी जानी.
सत्ता का है सब हंगामा ,
सत्ता की सब मनमानी.
-अक्षिणी भटनागर-

शनिवार, 11 फ़रवरी 2017

स्वयंप्रज्ञा..मूर्ख

बचते बचाते 'इंतिहा'आज फिर वही मूर्खता
कर गए,
मूर्खों की खातिर मूर्खों की मानिंद मूर्खों से
भिड़ गए..
अक्षिणी

मानिंद -  तरह

वादा..

'इंतिहा' नया इरादा कर लें,
फिर सुबह का वादा कर लें..
           -अक्षिणी भटनागर-

शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2017

बेफ़िकर...

हाशियों पै गुजरी है उमर 'इंतिहा'
हादसों की फ़िक्र क्या.
निगाहों ने जिए समंदर तमाम,
बारिशों का ज़िक्र क्या..

अक्षिणी भटनागर

पैंतालिस पार..

फिर यूपी का चुनाव,फिर से रागा पै दाँव
फिर वही भटकाव, फिर वही ठहराव.
पैंतालिस के पार युवा कहलाने का चाव,
फिर बच्चों सा बर्ताव,हवा में चलाए नाव.
और सोच का अभाव, बस डोप का प्रभाव,
देश,लाज और नाम, बेच खाए बट्टे के भाव..

अक्षिणी भटनागर

बुधवार, 8 फ़रवरी 2017

मुस्करा के मिल

कहीं किसी रोज इठला के मिल,
लहरा के मिल, बल खा के मिल,
शरमा न यूं, 'इंतिहा' ज़िंदगी,
कहीं किसी रोज मुस्करा के मिल.

कहीं किसी रोज इतरा के मिल,
चाह के पन्नों पे बिखरा के मिल,
झुका न यूं नजर 'इंतिहा' ज़िंदगी,
कहीं किसी रोज मुस्कुरा के मिल.

ठहर किसी ठोर ,अलसा के मिल,
बहक जरा देर, बहला के मिल.
जरा देखें तेरे तौर 'इंतिहा' ज़िंदगी,
कहीं किसी रोज मुस्करा के मिल.

कहीं किसी रोज लहरा के मिल,
महक जरा देर महका के मिल,
छू कर देखें तुझे 'इंतिहा' ज़िंदगी,
कहीं किसी रोज पास आ के मिल.

-अक्षिणी भटनागर-

मंगलवार, 7 फ़रवरी 2017

खुदा होगा..

हो तेरी जो राह सही,
और खुद पै हो यकीं,
जमाने से जो 'इंतिहा' जुदा होगा,
बंदा वही तेरा खुदा होगा..

With special reference to SLB.
यूं बांटने चला तु नफरत,
थी कुफ्र तेरी फितरत,
तुझको नहीं पता होगा,
शैतां तेरा खुदा होगा..

-अक्षिणी भटनागर-

तम्मा-तम्मा

हाथी और झाड़ू संवारते रहे अपने अरमां,
पप्पु और टीपू जलाते रहे अपनी शम्मा,

उधर नाची ऐसी वो छम्मा-छम्मा
और चिनम्मा बन गई नयी अम्मा

पनीर सेल्वम् निकले उसके भी अब्बा,
लो अब कर लो तुम तम्मा-तम्मा..

-अक्षिणी भटनागर-

रविवार, 5 फ़रवरी 2017

आभार..

सब स्वरों में ओम तुम हो, नश्वरों में प्राण तुम.

ज्योति का आह्वान तुमसे, हो सकल संसार तुम.

अग्नि का संधान तुमसे, वायु का संचार तुम.

सब ज्ञान-विज्ञान तुम से, सत्य का संज्ञान तुम.

स्वस्ति का समभाव तुमसे, सृष्टि का आधार तुम.

सब स्वप्न हैं साकार तुमसे, हो धरा आकाश तुम.

हैं सभी संस्कार तुमसे, हो सोलहों श्रृंगार तुम.

है ऋणी संसार सारा, श्री शक्ति का सत्कार तुम.

हे ईश्वर जो तुमने दिया है, उसके लिए आभार..

और जो नहीं मिला, वह भी तुम्हें समर्पित..

- अक्षिणी

शुक्रवार, 3 फ़रवरी 2017

मदमस्त सिद्धहस्त..

अक्षरकृमियों के इस वन में
सब कोई मंचस्थ हैं..
जो व्यस्त हैं वे तृप्त हैं,
जो अस्त हैं वे त्रस्त हैं
और जो न व्यस्त हैं न अस्त हैं
वो सब के सब बड़े पस्त हैं.
कुछ स्वस्थ हैं तो सब उदरस्थ है.
(हाजमा अच्छा है भाई !)
फिर कुछ संत हैं कुछ भक्त हैं,
कुछ त्यक्त हैं कुछ आसक्त है.
सत्य सबके अंतस है
ये अलग बात है,अव्यक्त है.
जो धर लेते हैं वो सख्त हैं
जो कह देते हैं वो मस्त हैं
जो भी हो सब के सब मदमस्त हैं,
कमबख्त सारे सिध्दहस्त हैं..
-अक्षिणी भटनागर
(सारे छपास के रोगियों को सादर समर्पित)

बुधवार, 1 फ़रवरी 2017

मजा नहीं आया..

कुछ भी कहिए वित्तमंत्री जी मजा नहीं आया
राॅकेट की उम्मीद थी  अनार भी नहीं चलाया.
इस बार  का बजट मन को नहीं भाया
यकीन मानिए जरा भी समझ नहीं आया.

न बुलेट ट्रेन चलाई न भाड़ा बढ़ाया
फालतू में रेल बजट को साथ मिलाया
खोई बाजी खाली अपना दाँव लगाया
खूब था मौका तुमने यूं ही क्यों गंवाया?

कठिन घड़ी है चुनावों ने द्वार बजाया
फिर भी ना कोई तुमने तीर चलाया
चुनाव आयोग का तुम पै था साया
क्या था डर ,क्यों तुम्हारा जी घबराया?

ढूँढने वाले ढूँढ ही लेंगे बारीकियाँ इसकी,
उजालों में बदल ही देंगे तारीकियाँ इसकी,
लेकिन बँधु मेरा नन्हा दिल घबराया
यकीन मानिए बिल्कुल मजा नहीं आया

कच्चा पक्का अटका भटकाशेर सुनाया
खूब समय था रट्टा काहे नहीं लगाया?
फिर पुराना भूरा बक्सा साथ में आया
नये रंग में इसको क्यूं नहीं रंगाया?

पार्टी घिरी खड़ी है,दुश्मनों ने हाथ मिलाया
ताक देखते पप्पुकेजरी और ममता माया
इनको हँसने का क्यूं तुमने बहाना दिलाया?
मेरी समझ में जरा न आया, जरा न भाया..
अक्षिणी भटनागर