चाह ने तेरी ए जिंदगी बाँधा है कुछ इस तरह, खुलते नहीं हैं इन दिनों ख़ुद से भी हम. होते तो हैं रूबरू आईने से हम पहले की तरह, मिलते नहीं हैं इन दिनों ख़ुद से भी हम.
अक्षिणी भटनागर
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