शुक्रवार, 21 अप्रैल 2017

कर्म का पंछी..

क्या लेना है इन तकदीरों को,
सीधी सच्ची तदबीरों से ..
कर्म का पंछी उड़ता जाए,
भाग की बंसी ना सुन पाए..

हाथ की उलझी चंद लकीरों ने,
भाग को बांधा किन जंजीरों में.
कर्म का पंछी जोर लगाए,
भाग के बंधन ना खुल पाए.

कर्म की झूठी इन तकरीरों ने,
खूब छला है इन तहरीरों ने.
फिर फिर मन ये आस लगाए,
भाग के लेखे ना मिट पाएं..

क्या लेना है इन तकदीरों को,
सीधी सच्ची तदबीरों से.
कर्म का राही छलता जाए..
भाग का मारा जी न पाए..

अक्षिणी भटनागर

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