'इंतिहा'लिखते थे कभी तेरी ख़ातिर,
उम्र गुज़री है तेरे जलवों के लिए,
तेरे कौलों, तेरे लफ्ज़ों की ख़ातिर ,
तेरी महफिल में अपने चरचों के लिए..
खूब सिखाया तेरे इश्क ने हमें,
आज लिखते हैं चंद परचों के लिए.
काम आया है वो फन बरसों बाद,
दाल रोटी के चार खरचों के लिए..
अक्षिणी भटनागर
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